Book Title: Saral Jyotish
Author(s): Arunkumar Bansal
Publisher: Akhil Bhartiya Jyotish Samstha Sangh

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Page 128
________________ रखता है। परन्तु यह सब कुछ नहीं। हमारे महर्षियों ने यह स्पष्ट शब्दों में कहा है कि जो कुछ कुण्डील में नहीं वह गोचर नहीं दे सकता। गोचर में ग्रह चाहे कितना ही अच्छा योग बनाते हो यदि वह योग कुण्डली में नहीं तो वह गोचर नहीं दे सकता। उदाहरण गोचर तो दशा व अन्तर दशा के अधीन भी कार्य करता है। यदि दशा व अन्तर दशा ऐसे ग्रहों की चल रही हो तो जातक जो जातक के लिये अशुभ हो परन्तु गोचर शुभ हो तो गोचर का शुभ फल जातक को नहीं मिलता। क्योंकि गोचर में यह देखा जाता है कि जन्म कुण्डली की ग्रह स्थिति से वर्तमान गोचर कुण्डली में ग्रह स्थिति अच्छी या बुरी कैसी स्थिति में है। जो ग्रह जन्म कुण्डली में उत्तम स्थान में पड़ा हो वह गोचर में शुभ स्थान पर आते ही शुभ फल देगा। जो ग्रह जन्म कुण्डली में अशुभ हो वह यदि गोचर में शुभ भी होगा तो भी शुभ फल नहीं देगा। गोचर ग्रह जन्म के ग्रहों से जिस समय अंशात्मक या आसन्न योग करते हैं उस समय ही उनका ठीक फल प्रकट होता है। मान लो शुक्र वृष में 18° पर है। गोचर में शुक्र जब वृष 18° से योग बनायेगा। तब ही शुक्र का अच्छा या बुरा फल प्रकट होगा। इस प्रकार गोचर ग्रह जन्म के ग्रह के अधीन हुआ। यदि गोचर का ग्रह अशुभ भाव में हो जन्म कुण्डली में वह ग्रह उच्च, स्वक्षेत्री हो तो गोचर में वह ग्रह अशुभ फल नहीं देता। अर्थात् गोचर के नियमों के आधार पर हम कह सकते हैं कि गोचर का फल जन्म कुण्डली के ग्रह स्थिति पर निर्भर करता है। यदि गोचर के अन्य नियमों का अध्ययन करे तो हम पायेंगे कि गोचर दशा व अन्तर दशा के भी अधीन है। एक ही भाव के कई फल होते है। जैसेचतुर्थ भाव का कारकत्व माता, शिक्षा, वाहन जमीन, खेती बाड़ी सुख इत्यादि। इसमें से कौन सा फल फलित होना है यह सब दशा व अन्तर दशा पर निर्भर करता है। गोचर का फल वही होता है जो दशा व अन्तर दशा चाहती है। अर्थात् गोचर का फल दशा व अन्तर दशा के ऊपर निर्भर करता है। गोचर का फल तारा पर भी निर्भर करता है। 128

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