Book Title: Sanskrit Sahitya Ka Itihas Author(s): V Vardacharya Publisher: Ramnarayanlal BeniprasadPage 16
________________ भूमिका संस्कृत की विभाषाओं का भी उल्लेख करते हैं, जिसका उन्होंने अपने ग्रन्थों में वर्णन किया है। देश के विभिन्न भागों में बोले जाने वाले प्रयोगों का भी उल्लेख किया है। ___ शवतिर्गतिकर्मा कम्बोजेष्वेव भाषितो भवति, विकार एनमार्या भाषन्ते शव इति । हम्मतिः सुराष्ट्रेषु, रंहतिः प्राच्यमध्यमेषु, गमिमेव त्वार्याः प्रयुञ्जते । दातिर्लवनार्थे प्राच्येषु, दात्रमुदीच्येषु । महाभाष्य १-१-१ । शब्दों के अन्त में लगने वाले प्रत्ययों में से कुछ पूर्वीय लोगों को रुचिकर थे, कुछ उतर वालों को और कुछ कम्बोज (हिन्दुकुश पर्वत के पास रहने वाले) लोगों को ।' दक्षिण के व्यक्तियों को तद्धित प्रत्यय वाले प्रयोग अधिक रुचिकर थे। प्रियतद्धिता दाक्षिणात्याः । महाभाष्य १-१-१ । पाणिनि ने पुत्रादिनी और पुत्त्रादिनी के अर्थों में अन्तर का उल्लेख किया है कि इस प्रकार इनका प्रयोग करें। इसमें से प्रथम शब्द घणा-सूचक है और दूसरे का अर्थ है वस्तुतः पुत्र को खाने वाली, जैसे सर्पिणी । दूर से सम्बोधन में व्यक्ति के नाम का अन्तिम स्वर प्लत उच्चारण किया जाता है। इसी प्रकार पाणिनि ने द्यत के पारिभाषिक शब्दों, ग्वालों की बोली और स्वरों के प्रयोग के विषय में विस्तृत विवरण दिया है । यदि संस्कृत बोलचाल की भाषा न होती तो ये सभी नियम निरर्थक होते । निम्नलिखित कारणों से भी ज्ञात होता है कि संस्कृत बोलचाल की भाषा थी । युष्मद् शब्द के स्थान पर भवत् शब्द का प्रयोग, दास्याः पुत्रः आदि निन्दार्थक शब्द जिनमें षष्ठी का अलुक है, अनुकरणात्मक * १. अष्टाध्यायी ४-१-१७, ७-३-४६, ४-१-४३ २. अष्टाध्यायी ८-४-४८ ८-२-८४ ३-३-७० ४-२-३६, ७-१-१,४-२-४७ १-४-१०८ ६-३-२२, ६-३-२१ * ;Page Navigation
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