Book Title: Sanshay Sab Door Bhaye
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पञ्चहं पञ्चसया अद्धदुसयाई हुन्ति दुन्ति गणा । दुन्नं जुयलबहा इस प्रकार (५०० ५ १२००, २५०० ७०० तिसओ तिसओ हवइ गच्छो ॥ (प्रारंभिक पाँच पण्डितोंके पाँच सौ-पाँच सौ शिष्य थे. फिर दो के साढ़े तीन सौ साढ़े तीन सौ और अन्तिम चार (दो युगल) के तीन सौ तीन सौ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५००, ३५० २ ७००, ३०० १२०० ४४००) ४ कुल चवालीस सौ की संख्यामें इन्द्रभूति आदि ग्यारह पण्डितों को मिलाने पर कुल योग चार हजार चार सौ ग्यारह हो जाता है. For Private And Personal Use Only पू. गुरु म. श्री का यह प्रवचन जिन्होंने सुना है तथा जिन्होंने नहीं सुना है, दोनों ही समानरूप से लाभान्वित हो सकें और उस पर किया हुआ चिन्तनमनन वह हमारे आचरण का अंग बने यही आकांक्षा है । गुरुकृपाकांक्षी मुनि देवेन्द्रसागर

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