Book Title: Sanshay Sab Door Bhaye
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 47
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसके उत्तरमें वे बोले:-"मस्तिष्क सारे शरीर का मालिक है, वह मस्तकमें , रहता है, इसलिए मस्तक पर भारतीय साफा पहिना, किन्तु पाँव शरीर के सेवक है. जूते पाँव की रक्षा करते हैं, इसलिए के सेवक के भी सेवक हैं. सेवक तो किसी भी देश का हो सकता है. यही कारण है कि मैंने अमेरिकन जूते पाँवोंमें पहिन लिये हैं." पूछने वाला निरुत्तर हो गया. उसी अमेरिकामें एक पादरीने किसी टेबल पर बहुत से धर्मग्रन्थ एक-पर-एक जमा दिये. उनमें जान-बूझकर सबसे नीचे गीता रखी और सबसे ऊपर बाइबल. फिर स्वामीजी को उस टेबल के पास ले जाकर खड़ा कर दिया. देखकर स्वामीजी बोल उठे:- "गुड फाउंडेशन । नींव बहुत अच्छी है. गीता को वहाँ से मत हटाइयेगा, अन्यथा आपका सारा साहित्य गिर पड़ेगा-बाइबल भी गिर जायगी।" पादरी को शर्मिंदा होना पड़ा. वहींके निवासी एक वकीलने पूछा:- “यदि आत्मा है तो मुझे प्रत्यक्ष बतलाइये.'' स्वामीजीने एक सुई मंगा कर वकील के हाथमें चुभो दी. वकील चिल्लाया-"अरे यह क्या किया ? मुझे बहुत वेदना हो रही है." स्वामीजी :- "यदि आपको वेदना हो रही है तो मुझे प्रत्यक्ष बतलाइये ।" वकील :- "वेदना तो अनुभव की चीज़ है. उसे प्रत्यक्ष नहीं बताया जा सकता." स्वामीजी :-- " आत्मा को भी प्रत्यक्ष नहीं बताया जा सकता. वेदना के समान उसका भी केवल अनुभव किया जा सकता है." पानीमें यदि काई जम जाय तो उसमें अपने शरीर का प्रतिबिम्ब नहीं दिखाई देगा. लालटेनकी चिमनी धुआँसे काली हो रही हो तो प्रकाश उससे बाहर नहीं आ सकेगा. उसी प्रकार मन जब तक विषय-कषाय से मलिन रहता है, तब तक हमें आत्मा के प्रकाश का-आनन्द का अनुभव नहीं हो सकता. मन निर्मल होता है-आराधना और साधना से. उस वकील की तरह श्री इन्द्रभूति को भी आत्माका ज्ञान नहीं था. प्रभुकी कृपासे उन्हें वह ज्ञान प्राप्त हुआ. ट्रेन को देखिये. वह कितनी लम्बी-चौड़ी होती है-कितनी ताकतवर ? किन्तु ड्राइवर यदि असावधान हो और आगे पुल टूटा हुआ हो तो भयंकर दुर्घटना हो जायगी. इससे विपरीत एक छोटी-सी चींटी भी For Private And Personal Use Only

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