Book Title: Sanshay Sab Door Bhaye
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 51
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir YA श्री इन्द्रभूति को आत्मा के विषयमें सन्देह था कि उसका अस्तित्व है या नहीं, परन्तु यह सन्देह ही आत्माके अस्तित्व को प्रमाणित कर देता है, क्योंकि जिस वस्तुका सन्देह होता है, उसका अस्तित्व कहीं-न-कहीं. अवश्य होता है, रातको दूर से किसी को अपनी ओर आते देखकर यह सन्देह होता है कि वह मनुष्य है या पशु ? चमकती हुई किसी वस्तुको देखकर सन्देह होता है कि यह चांदी है या सीप ? अथवा हल्के अँधेरेमें सड़क पर पड़ी हुई किसी लम्बी चीजको देखकर यह सन्देह होता है कि यह साँप है या रस्सी ? इन सब सन्देहों में मनुष्य, पशु, चाँदी, सीप, साँप और रस्सी इन सबका कहीं-न-कहीं अस्तित्व अवश्य है. यदि आत्माका अभाव होता तो श्री. इन्द्रभूतिजी को उसके विषयमें सन्देह भी न होता. जिस प्रकार सन्देह ज्ञानका एक प्रकार है, वैसे ही स्मृति, इच्छा, तर्क, जिज्ञासा, बोध आदि भी ज्ञान के प्रकार है. ज्ञान एक गुण है. गुण गुणीके बिना नहीं रह सकता, इस लिय यदि गुण हैं तो गुणी भी अवश्य है. वही आत्मा है. मूर्दे शरीरमें हर्ष, शोक, सुख, दुःख आदिका अनुभव नहीं होता. यह अनुभव जिसे होता है, वही आत्मा है. लाशका भी शरीर तो वैसा ही होता है, जैसा जीवित प्राणिका, परन्तु वह कोई कार्य नहीं कर सकता. आत्माका अभाव ही उसे निष्क्रिय बनाता है. मैं था, मैं हूँ और मैं रहूँगा-इस प्रकार त्रैकालिक प्रतिति जो सबको होती है, वह भी आत्माके अस्तित्व को प्रमाणित करती है. "घट नही है" यह वाक्य घट के अस्तित्व का प्रमण प्रस्तुत करता है, क्यों कि घट भले ही घर में न हो, वह कुम्भार के यहाँ तो है ही. इसी प्रकार "आत्मा नहीं है" यह वाक्य भी आत्माके अस्तित्व का प्रमाण प्रस्तुत करता है, क्योंकि जड़ पदार्थ में या मुर्दे में आत्मा भले ही न हो, वह जीवित प्राणियों के शरीर में तो है ही.. जैसे मुँह से बोला गया शब्द सुनाई पड़ता है, किन्तु अरुपी होने से दिखाई नहीं देता, उसी प्रकार आत्मा भी अरूपी (अमूर्त) होने से दिखाई नहीं देती. परन्तु उसका अनुभव होता रहता है. । ३३ For Private And Personal Use Only

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