Book Title: Sanshay Sab Door Bhaye
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 87
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अशुद्धियाँ कर जाता था : परन्तु वेदोका पाठ बिल्कुल शुद्ध करता था. पूर्व भवके संस्कारोंका यह प्रभाव था. इससे आत्मा की नित्यता और उसके पुनर्जन्म की सिद्धि होती है. एक घटना महाराष्ट्रकी सुनिये. कोल्हापुरके पास ईचलकरंजी में एक श्रावक रहते थे - श्री रूपचंदजी. सांगली-बैंक के डायरेक्टर थे.- पढ़े लिखे थे - बुद्धिमान् थे. उन्होंने एक नया भवन बनवाया था । रहने के लिए. जब घूमने-फिरने के लिए भवन से सब लोग बाहर निकलते थे, उनके भवन में अकस्मात् आग लग जया करती थी. हजारों रूपयों के मूल्यका सामान जल चुका था. निपाणी के निवासी डी. सी. शाहने मुझसे कहा :- "महारज । श्री रूपचंदजी के नये बँगलेमें कोई भूतप्रेतका चक्कर है. उसका आप कोई उपाय करें, जिससे निर्भय और निश्चिन्त होकर वे शान्ति से उसमें रह सकें" मेरे जीवन में पहले ऐसा कोई प्रसंग नहीं आया था. फिर भी मैं वहाँ गया. बड़ा आलीशान बँगला बना हुआ था. श्रावक रूपचंदजी ने जली हुई चीजें बताईं, उन्होंने कहा :- "इस उपद्रवसे हमारे परिवारको कोई कष्ट नहीं है, परन्तु ज्यों ही रूम बन्द करके हम बाहर जाते हैं कि अकस्मात् चीजों में आग लग जाती है - फर्नीचर जल गया - टी.वी. जल गया पासपोर्ट गुम गया. बहुत सा नुकसान हुआ हम यदि यहाँ रहना छोड़ दें तो इतने सुन्दर बँगलेको कोई एक रूपये में भी खरीदने को तैयार न होगा : इसलिए हमको ही रहना पड़ रहा है". मैंने कहा :- "आपकी भूमि अशुद्ध होगी या यहाँ किसी की कब्र दब गई होगी, आप खोजकरके इस बातका पता लगाइये." म्युनिसिपैलिटी में पुराना रिकार्ड देखने पर पता लगा कि सचमुच वहाँ किसी की कब्र दब गई थी. मेरा अनुमान ठीक निकला. मैंने उनसे कहा :- "शान्तिस्नात्र पढवाओ और एक चबूतरा बनवाकर उस पर चिराग जलाओ चिराग से पीर-फकीर बड़े खुश होते हैं. इससे उस आत्माको सन्तोष हो जायगा." यही उपाय किया गया. उपद्रव बन्द हो गया शान्तिस्नात्रसे आत्मा शान्त हो गई. चिराग़ से सन्तुष्ट हो गई. ६९ For Private And Personal Use Only

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