Book Title: Sanshay Sab Door Bhaye
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 92
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir FD (फिर परलोकके अस्तित्व पर जिसे सन्देह था, उस पण्डितराज मेतार्यसे । प्रभुने कहा कि वेदों का तुम वास्तविक अर्थ क्यों नहीं समझ लेते ? (वास्तविक अर्थ समझने पर ही तुम्हारा सन्देह मिट सकेगा., अन्यथा नहीं) दसवें महापण्डित मेतार्य भी अपने तीन सौ छात्रोंके समुदायके साथ प्रभुने इनसे कहा:- हे मेतार्य । परलोक है या नहीं ? ऐसा सन्देह तुम्हारे मनमें जिन पदों के आधार पर उत्पन्न हुआ था, सो ये है- विज्ञानघन एवै तेभ्यो भूतेभ्यः समुत्थाय तान्येवान विनाशयति, न प्रेत्य संज्ञास्ति ।। (विज्ञानघन ही पृथ्वी आदि पाँच महाभूतों से उत्पन्न होकर उन्हीमें विलीन हो जाता है. मरनेके बाद कोई संज्ञा (अस्तित्व) नहीं रहती) किन्तु इस वेदवाक्य का वास्तविक अर्थ यह है कि ज्ञानकी पर्यायें ज्ञेयके परिवर्तन के साथ परिवर्तित होती रहती हैं. इस वेदना वाक्यमें परलोक का निषेध नहीं किया गया है. एक अनुमान प्रमाण है- अस्ति परलोकः, इहलोकस्य अन्य थानुपपत्तेः । परलोक का अस्तित्व है., क्योंकि इहलोक (वर्तमान भव) की अन्यथा उपपत्ति सम्भव नहीं. यह लोक है तो परलोक भी होना ही चाहिये. जैसे तुम हो तो तुम्हारे पूर्वज (पिता, पितामह आदि) भी हैं ही. बालक जन्म लेते ही स्तनपानके लिए प्रवृत्त होता है. स्तनपानकी शिक्षा उसे किसने दी ? वासनाके बिना प्रवृत्ति पूर्वभवमें प्राप्त शिक्षणका परिणाम है. पूर्वभव न मानने पर जीवॉकी स्थितिमें जो विषमता है, उसके कारण का पता नहीं चलता पूर्वभवमें बाँधे गये शुभाशुभ कर्म ही विषमताके कारण है., इसलिए पूर्वभव है और यदि पूर्वभव है तो परभव भी है, जिसमें इस भवके संचित कर्मोंका शुभाशुभ परिणाम भोगा जायगा. इस प्रकार । भूतकालके अनन्त भव और प्रत्येक के बाद वाले उत्तरभव (परलोक) सिद्ध होते है. प्रभुके इन वचनोंको सुनते ही पण्डितराज मेतार्य का संशय मिट गया अपने तीन सौ छात्रोंके समुदाय के साथ उन्होंने प्रभु के चरणों में आत्मसमर्पण कर दिया. प्रभु से "त्रिपदी" का बोध पाने के बाद उन्होंने भी द्वादशांगी की रचना की. प्रभुने अपने संघमें उन्हें दसवें गणधर के रूपमें प्रतिष्ठित किया. ७४ For Private And Personal Use Only

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