Book Title: Sanshay Sab Door Bhaye
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 86
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रसाद उस समय राष्ट्रपति थे और पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रधानमन्त्री. दोनों उस समय राष्ट्रपति भवन में मौजूद थे. एक व्यक्तिने डॉ. राजेन्द्रप्रसाद से कहा कि ऊपर की मंजिलमें जाकर आप एक कागजपर कुछ भी लिख दीजिये. मैं बता दूंगा कि आपने क्या लिखा है. वैसा ही किया गया. सीलबन्द लिफाफेमें अपना लिखा हुआ कागज ऊपर रख कर राष्ट्रपतिजी नीचे आ गये. उस व्यक्तिने एक कागज उढाकर वह पूरा मैटर ज्यों का त्यों लिखकर उनके हाथमें थमा दिया-मानों उसकी कार्बन कॉपी हो. पंडित नेहरू ने पूछा :- "भला बताओ, यह मैटर हू-ब-हू तुमने कैसे लिखा दिया ?" व्यक्तिने कहा :- "जैसे आपकी साइन्स है, वैसे हमारी भी साइन्स है. हमारी साइन्स आप नहीं समझ सकते." पं. नेहरू :- "क्या तुम मेरे मनके विचार पकड़ सकते हो ?" व्यक्ति बोला :- "बिल्कुल लीजिये, मैं आपके मनके विचार एक कागज पर लिखकर दे रहा हूँ पढ़ लीजिये." उस समय नेहरूजी का मन बहुत चंचल हो गया था, ऐसे चंचल मनको पकड़ने में उस व्यक्ति को कुछ कठिनाई जरूर हुई. परन्तु किसी भी तरह मनके विचार कागज पर उतार कर दे दिये. कागज़ पढ़कर नेहरूजी बहुत चकित हुए, उन्होंने अपने मनके अकस्मात् चंचल होने की बात भी स्वीकार की. ऐसे कई व्यक्ति मेरे परिचय में है, जिन्हें ऐसी अलग-अलग सिद्धियाँ प्राप्त राष्ट्रपति भवन की ही एक घटना और है. उस समय लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमन्त्री थे और राष्ट्रपति पद को सुशोभित कर रहे थे डॉ राधाकृष्णन्. एक पाँच वर्ष के ब्राह्मण बालक ने वहाँ सबके सामने उदात्त अनुदात्त स्वरोंके साथ वेदकी अनेक ऋचाओं का मौखिक पाठ सुनाया. उसे सारे वेद कण्ढस्थ थे. बड़े-बड़े पंडितोंने पाठ सुनकर (उस बालकके मुँहसे ऋचाओंका उच्चारण सुनकर) चकित और प्रसन्न होते हुए यह स्वीकार किया कि इतना अच्छा पाठ तो हम भी नहीं कर सकते । वह 'छोटा-सा बालक लिखना बिल्कुल नहीं जानता था. बोलने में भी ६८ For Private And Personal Use Only

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