Book Title: Sanshay Sab Door Bhaye
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 53
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर आराम कुर्सी पर बैठ जाते है. सोचिये, शोकमग्न कौन हुआ ? दुःख किसे हुआ ? आत्माको । शरीर तो आराममें ही था. पूरे हाथको सड़ने से बचानेके लिए सर्जन उँगली काट देता है दर्द मिट जाता है. फिर भी जीवन-भर "हाय । मेरी उँगली चली गई" - ऐसा विचार कौन करता है ? एक उँगली के अभाव का अनुभव किसे होता है ? आत्मा को. एक ही माता दो बच्चों को एक साथ जन्म देती है-समान प्यार से उन्हें पालती है-दूध पिलाती है-खिलाती है-एक ही स्कूल में पढ़ने भेजती है. फिर भी दोनों के स्वभावमें अन्तर होता है. क्यों ? इसलिए कि उन दोनों बालकों के शरीरों में आत्माएँ अलग-अलग है. सत् (विद्यमान) पदार्थ का प्रतिपक्ष भी सत् होता है. अजीव (जड़ पदार्थ) सत् है तो उसका प्रतिपक्ष "जीव' भी सत् होना चाहिये. व्यापार के लिए आरामका, बीमार पुत्र के लिए व्यापारका और पत्नी की खुशी के लिए पुत्रका भी त्याग कर दिया जाता है : परन्तु जब घरमें आग लग गई हो, तब पत्नी को भी छोड़ कर अपने प्राण बचाने के लिए वही व्यक्ति तत्काल बाहर भाग जाता है. इससे सिद्ध होता है कि प्रत्येक प्राणी के लिए प्रियतम आत्मा है. उसे सुख, शान्ति, लाभ, सन्मान रूचते हैं और दुःख, अशान्ति, हानि, अपमान नहीं रुचते. शास्त्रकार आत्माका लक्षण बताते हुए कहते हैं : य : कर्ता कर्म भेदानाम् भोक्ता कर्मफलस्य च । संसर्ता परिनिर्वाता स यात्मा नान्यलक्षण : ॥ (जो आठ कर्मों का कर्ता है, कर्मफलका भोक्ता है, जो संसार में भटकता है और निर्वाण पाता है, वही आत्मा है. उसका और कोई लक्षण नहीं है.) श्री इन्द्रभूति विस्तार से यह सब समझ गये, क्योंकि वे बुद्धिमान् थे. यदि अन्धे आदमी से कहा जाय कि लाइट बहुत अच्छी है तो वह क्या समझेगा ? पूछेगा, जिज्ञासा प्रकट करेगा, परन्तु समाधान उसका नहीं हो सकेगा. ३५ श For Private And Personal Use Only

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