Book Title: Sanshay Sab Door Bhaye
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 66
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रमाद आदि दोषोंके निमित्त से विविध कर्मों का उपार्जन करके जीव । उनका शुभाशुभ फल भोगने के लिए संसार की चौरासी लाख योनियों में भटकता रहता है. प्रत्येक कार्यका कोई-न-कोई कारण अवश्य होता है. जैसा कि तुम्हारे शास्त्रों में लिखा है : नाकारणं भवेत्कार्यम् नाऽ न्यकारण कारणम् अन्यथा न व्यवस्था स्यात् कार्यकारणयो : क्वचित् ॥ बिना कारण के कार्य (बिना मिट्टी के घट) नहीं होता. अन्य कारण से भी कार्य नहीं होता (पानी से घी नहीं निकल सकता) कार्य और कारण की यह व्यवस्था कभी उलट नहीं सकती अर्थात् पहले कार्य हो और बादमें कारण-ऐसा नहीं हो सकता । (घीसे मक्खन, मक्खनसे दही. दही से दूध या दूध से घास नहीं बन सकती ।) संसारमें कोई राजा है, कोई रंक-कोई स्वामी है, कोई दास - कोई स्वस्थ है, कोई रूग्ण-कोई बालक है, कोई वृद्ध-कोई स्त्री है, कोई सर्वांगसुन्दर है, कोई अपंग (लूला-लँगड़ा-अन्धा-काना-कुबडा नकटा-बहरा आदि) कोई सुखी है, कोई दुखी - कोई मालिक है, कोई मजदूर कोई महल में रहता है, कोई घासफूस की झोपडी में । यह जो विषमता देखी जाती है, वह कार्य है तो उसका कोई न कोई कारण भी अवश्य होना चाहिये. जो इस भिन्नता या विषमताका कारण है, उसीका नाम कर्म है : इसलिए कर्मका अस्तित्व है." प्रभुके सारगर्भित वचन सुनकर अग्निभूतिका संशय निर्मूल हो गया. शुभ कर्म (पुण्य) के उदय से किस प्रकार अनुकूलताएँ पैदा होती है - इसके लिए एक लौकिक दृष्टान्त मैं सुनाता हूँ :सेठ मफतलाल के पिता का स्वर्गवास हो गया वे बहुत नामी वैद्य थे. रोगियों की सेवा करके उन्होंने बहुत धन कमाया था, परन्तु उनके बेटेमें वैसी योग्यता नहीं थी. प्रेक्टिस चली नहीं. पिताजी के द्वार अर्जित धन । भी अंजलिमें जलके समान धीरे-धीरे समाप्त हो गया. परिस्थिति ऐसी आ गई कि खाने के भी लाले पड़ने लगे। ४८ For Private And Personal Use Only

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