Book Title: Sanshay Sab Door Bhaye
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 76
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org दिखाई दिया. सोचा कि पिताजी कितने दयालु हैं. उन्होंने पहले से मेरे लिए यहाँ बिस्तर लगा रखा है, जिससे नाटक देखकर लौटने में यदि मुझे देर हो जाय तो यहाँ आराम कर सकूँ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उसने साइकिल वेटिंगरूममें रखीं और बिस्तर पर लेट गया. थका हुआ तो था ही. लेटते ही निद्राधीन हो गया और फिर बादमें जो कुछ हुआ, सो आप सब जानते ही हैं. श्रावक की पेटी स्टेशनमास्टर के रूममें मिल गई, सो उसे दे दी गई. पेटी लेकर वह राजी-खुशी अपने घर पहुँचा. स्टेशन छोड़नेसे पहले उस सज्जन हरिजनको उसने उचित पारितोषिक दिया, जिसने ठीक अवसर पर आकर उसकी जान बचाई उसे नया जीवन दिया कहने का आशय यह है कि हम जैसा भी कर्म करते हैं, वैसा शुभाशुभ फल हमें प्राप्त होता है: यथा बीजं तथा फलम् ॥ जैसा हम बीज बोते हैं, वैसा ही फल पाते हैं. बबलूका बीज बोने पर आमका फल नहीं मिल सकता. बुरे कर्म का अच्छा फल और अच्छे कर्मका बुरा फल नहीं मिल सकता. प्रत्येक प्राणी या तो सुखका अनुभव कर रहा है या दुःख का सुख शुभकर्म के उदय से मिलता है और दुःख अशुभ कर्मके उदय से, इसलिए यदि सुख-दुःख का अस्तित्व है तो कर्मका अस्तित्व भी है ही, दूसरी बात यह है कि यदि कोई नाम (संज्ञा) है तो वह पदार्थ भी अवश्य होता है. "कर्म" शब्द है- असंयुक्त शुद्ध पद है- नाम है- असंयुक्त शुद्ध पद है- नाम है- संज्ञा है तो कर्म पदवाच्य अर्थ (कर्म नामक कोई तत्त्व) भी अवश्य है- ऐसा मानना चाहिये. ज्यों ही अग्निभूतिका संशय निर्मूल हुआ, त्यों ही उन्होंने भी प्रभुके चरणों में आत्मसमर्पण कर दिया दीक्षा ले ली प्रभुके शिष्य बन गये अग्निभूति के पाँच सौ छात्र भी तत्काल प्रव्रजित हो गये. प्रभुने अग्निभूतिको भी "त्रिपदी" का ज्ञान दिया ज्ञान पाकर इन्होंने भी द्वादशांगी की रचना की. ५८ For Private And Personal Use Only

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