Book Title: Sanshay Sab Door Bhaye
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 39
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४. श्री इन्द्रभूति समवसरण में पहुँच गये थे. उनके मनमें एक शंका थी, जिसे उन्होंने किसी को बताया नहीं था. वह शंका- वह जिज्ञासा वास्तविक थी - विचार की भूमिका पर उत्पन्न हुई थी - शास्त्रों का स्वाध्याय करते-करते पैदा हुई थी. गहरे प्रश्नका उत्तर भी गहरा प्रभाव डालता है. यही कारण था कि महावीर स्वामी के उत्तर से इन्द्रभूति इतने प्रभावित हुए कि तत्काल उनके शिष्य बन गये. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुछ लोग अधूरा प्रशन लेकर आते हैं और कुछ लोग दूसरोंसे प्रश्न उधार लेकर चले आते हैं. उन्हें उचित समाधान नहीं मिल सकता. कई बार तो पूछनेवाले स्वयं भी नहीं जानते कि वे क्या पूछ रहे हैं-आगे का और पीछे का उस प्रश्नमें कोई सम्बन्ध ही नहीं बैठता. उचित समाधान उसी प्रश्नका किया जा सकता है, जो विचार और चिन्तन की भूमिका पर टिका हो-साधार हो, निराधार न हो प्यास भीतरी हो असली हो, वही बुझाई जा सकती है जिज्ञासा और प्यास उधार नही मिलती. पानी पिलानेवाले तो बहुत मिलेंगे, परन्तु प्यास कहाँ सें लायँगे ? उसी प्रकार उपदेशक और पंडित बहुत-से मिल जायँगे, परन्तु जिज्ञासा आप कहाँ से लायँगे ? वह अपने भीतरसे ही निकलेगी. उत्तर प्रशनकी प्रकृतिके अनुसार दिया जाता है. जैसा प्रशन, वैसा उत्तर. एक दिन प्रोफसर मफतलालने फिलोसोफी पढ़ाते हुए एक प्रश्न छात्रोंसे पूछा:- "यदि मैं हवाईजहाज से दिल्ली के लिए प्रस्थान करूँ और उस समय हवाई जहाज का वेग तीनसौ किलोमीटर प्रति घंटा हो तो बताओ मेरी अवस्था कितनी होगी ?" प्रश्न सुनकर सब छात्र विचारमें पड़ गये, क्योंकि प्रश्न बिना विचार किये ही पूछ लिया गया था. गणित का कोई सूत्र ऐसा नहीं था - कोई फार्मूला ऐसा नहीं था, जो इस ऊटपटाँग सवालके लिए फिट होता हो. सब एक-दूसरे का मुँह ताकते हुए फुसफुसा रहे थे कि ऐसा अनोखा सवाल तो हमने पहले कभी नहीं सुना उत्तर कैसे दिया जाया ? कुछ ही क्षणोंके बाद हिम्मत करके एक छात्र खड़ा हुआ. वह बोला"सर । अगर आप बुरा न मानें तो मैं आपके प्रश्नका उत्तर दे सकता २१ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105