Book Title: Sanshay Sab Door Bhaye
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 44
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेताजी के चले जानेपर एक धर्मश्रद्धालु भक्त उधरसे निकला. कुएँ के । भीतर से निकलने वाली पुकार सुन कर उसने अपने कन्धेसे रस्सी उतार कर कुएँ में डाल दी. सेठ से कहा:- "आप इस रस्सीको कस कर पकड़ लें. मैं खींचकर आपको बाहर निकाल देता हूँ. हमारे धर्म-शास्त्रोंमें लिखा है कि कुएँ में गिरे हुए आदमी को बाहर निकालने से बहुत पुण्य होता है-स्वर्ग मिलता है. वर्षांसे मैं कन्धे पर रस्सी का भार उठाये घूमता रहा हूँ सैकड़ों कुओं के पास से गुजरा हूँ. परन्तु कोई आदमी गिरा हुआ देखने में नहीं आया. आज पहली बार आप दिख गये. मैं धन्य हो गया. मेरा जीवन सफल हो गया. मेरा परिश्रम सार्थक हो गया." "धन्यवाद" कहकर सेठजीने रस्सी पकड़ ली. श्रद्धालुने उन्हें खींचकर बाहर निकाला. सेठजी राहत की साँस ले ही रहे थे कि श्रद्धालुने उन्हें फिरसे धक्का देकर कुएँ में गिरा दिया. सेठजीने पूछा :- "अरे भाई । गिराना ही था तो मुझे निकाला क्यों ?" श्रद्धालुः- “दुबारा निकालने के लिए. अनेक बार इसी प्रकार मैं आपको गिरा-गिरा कर बाहर निकालूँगा, जिससे स्वर्गमें मेरी सीट आरक्षित हो जाय-सुनिश्चित हो जाय." सेठजी:- "लेकिन इससे तो मैं बुरी तरह घायल हो जाऊँगा-मर जाऊँगा." श्रद्धालुः- "आपके घायल होने या मरने की पर्वाह कौन करता है ? मुझे तो पुण्य कमाना है-स्वर्ग पाना है. बड़ी मुश्किल से यह मौका आज मेरे हाथ आया है. इसे मैं हाथ से न जाने दूंगा." यह है-शब्दोंकी उलझन. आप जानते हैं ? गीता, पुरान, कुरान, वेद, बाइबिल, पिटक आदि कोई भी धर्मग्रन्ध हमें पवित्र क्यों न बना सका ? शब्दोकी उलझन ही उसका एक मात्र कारण है. शब्दों के प्राणों का स्पर्श हम कर नहीं पाते. श्री. इन्द्रभूति को भी वेदके शब्दोंका परिचय था, परन्तु उनके अर्थका बोध न था, इसीलिए वे संशय के झूले में झूलते रहे. वेदके परस्पर विरुद्ध वाक्योंसे उलझनमें पड़ गये. प्रभु के सम्पर्कमें न आये होते तो वे जीवन-भर पड़े ही रहते अपनी उलझनमें । 2 २६ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105