Book Title: Sanshay Sab Door Bhaye
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मठकी स्थापना कहाँ करूँ ?" तब उन्होंने उपयोगी भूमि खोजने के लिए पूरे भारतका भ्रमण किया. इसी सिलसिलेमें वे दक्षिण भारत गये. वहाँ एक जगह उन्होंने देखा कि भयंकर धूपसे घायल परेशान एक मेढक पर । कोई साँप अपना फन फैलाकर छाया कर रहा है. उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ, क्योंकि उन दोनों में भक्ष्य-भक्षक सम्बन्ध था. मेढक का भक्षक सर्प उसका रक्षक बनकर बैठा था। उस जंगल में रहनेवाले तपस्वी मुनियोंसे उन्होंने पूछा कि जो दृश्य मुझे दिखाई दिया, वह मेरी आँखों का भ्रम तो नहीं है. मुनियोंने कहा कि वह कोई भ्रम नहीं, रीयल फेक्ट है - यथार्थ है. ऐसे दृश्य यहाँ प्रायः सर्वत्र दिखते रहते है, क्योंकि वर्षों पहले शृंगेरी नामक एक अहिंसक तपस्वी यहाँ रहते थे. उनके हृदयमें प्राणिमात्र के प्रति वात्सल्य था. उनके वात्सल्यसे दक्ष भूमिका कण-कण प्रभावित हुआ है पवित्र हआ है. यही कारण है, जिससे इस भमिपर भ्रमण करने वाले प्राणियोंकी विचारधारा बदल जाती है. उनका आजन्म वैर छूट जाता है. आद्य शंकराचार्य आठवीं शताब्दीमें हुए थे, इसलिए यह बारह सौ वर्ष पहले की घटना है तो कल्पना की जा सकती है कि पच्चीस सौ वर्ष पहले जहाँ प्रभु महावीर विचारण करते रहे, वह भूमि कितनी पवित्र रही . होगी। जहाँ-जहाँ प्रभु बिराजमान होते थे, वहाँसे चारों ओर बारह योजन का एक अहिंसक वर्तुल बन जाता था. उस भूमि पर एट्रेक्शन ऑफ लव (प्रेम का आकर्षण) छा जाता था. प्रेम की उस परिधिमें प्रविष्ट होने वाले प्रत्येक प्राणी की मस्तिष्कतरंगें परिवर्तित हो जाती थीः आजन्म वैरी पशु-पक्षी तक निर्वैर होकर परस्पर प्यार करने लगते थे. उनका आचरण पवित्र हो जाता था - अहिंसक हो जाता था. गर्मीमें सड़क पर घूमनेवाला कोई बालक यदि मकानके भीतर आजाय तो उसे शान्ति मिलती है. उसी प्रकार बाहर विषय-कषाय में भटकती हुई मनोवृत्ति यदि आत्मामें रमण करने लगे तो उसे शान्ति का अनुभव होता है. श्री इन्द्रभूति गौतम को भी समवसरण में प्रभुदर्शन के बाद ऐसी ही शान्ति का अनुभव होने लगा. For Private And Personal Use Only

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