Book Title: Sanshay Sab Door Bhaye
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जहाँ सर्वज्ञ प्रभु महावीर स्वामी विराजमान है, उस समवसरणकी दिशामें जाते हुए इन्द्रभूति मनमें सोच रहे हैं आज अपनी सर्वज्ञता के :. मिथ्याभिमानमें फँसकर उसने मुझे व्यर्थ ही कुपित किया है, क्योंकि इससे उसे कोई सुख मिलनेवाला नहीं है. अपने को सर्वज्ञ घोषित करके मेरी सर्वज्ञताको चुनौती देनेका उसका यह प्रयास ऐसा ही भयंकर है, जैसा किसी मेढकका कालेनागको लात मारना-‍ -चूहेका बिल्लीके दाँत गिनना - बैलका ऐरावत (इन्द्र के हाथी) को सींग मारना- हाथी का सूँडसे पहाड उखाडना - खरगोशका सिंहके अयाल (गर्दनके लम्बे केश). खींचना - मणि पाने के लिए बालकका शेषनागके फनकी ओर हाथ बढाना - नंदी की बाढ़ के विरुद्ध तैरने के लिए किसीका तिनके पर सवार होना - प्रमंजनके सामने खड़े होकर जंगलमें आग लगाना अथवा शारीरिक सुखकी आशासे काँच (केवाँच) की फलियोंका आलिंगन करना । महावीर को जानना चाहिये कि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खद्योतो द्योतते तावद्यावन्नोदेति चन्द्रमाः । उदिते तु सहस्त्रांशौ न खद्योतो न चन्द्रमाः ॥ जुगनू तभी तक चमकता है, जब तक चन्द्रमाका उदय नहीं हो जाता, किन्तु सूर्य के उदय होने पर न जुगनू चमक सकता है और न चन्द्रमा ही । सूर्यके समान मैं तेजस्वी हूँ. जुगनुओंके समान अन्य वादी मेरे सामने अपनी चमक नहीं दिखा सकते. मेरे खानकी कोई सीमा नहीं है. ऐसा कौन सा शास्त्र है, जिसका अध्ययन मुझसे न हुआ हो ? लक्षणे मम दक्षत्वम्, साहित्ये संहिता मतिः । तर्केड कर्कशता नित्यम् क्व शास्त्रे नास्ति मे श्रमः ॥ लक्षणशास्त्र में मैं दक्ष हूँ. साहित्यशास्त्र में मेरी बुद्धि अस्खलित है. तर्कशास्त्र का अध्ययन तो मैंने इतनी गहराई तक किया है कि वह मुझे कर्कश (कठोर) बिल्कुल नहीं लगता. व्याकरण, कोश, छन्द, रस, अलंकार, ज्योतिष, वैद्यक, दर्शन, धर्म अर्थ, काम, मोक्ष, आदि समस्त शास्त्रोंका मैंने अनुशीलन- परिशीलन - चिन्तन मनन किया है. किस शास्त्र के आधार पर वह जादूगर मुझसे चर्चा करेगा ? अभी चलकर देखता हूँ कि वह कैसा ज्ञानी है। सबके सामने उसकी सर्वज्ञताके घमण्ड को चूर-चूर कर देता हूँ. ९ For Private And Personal Use Only

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