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श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् कथं कालविप्रकृष्टस्यातीतादेरसम्बन्धात् ध्वनिर्गमको भेवत् ? न, पारम्पर्येणातीतादिना तद्दर्शनद्वारायातस्य शब्दस्य प्रतिबन्धाद्, व्याप्तिग्रहणायाऽतीतादिविषयानुमानस्येव । न चैवमतिप्रसंगः, अनुमानेऽपि प्रसंगात् । 'आसीदग्निः' इत्यादिश्रुतेः अविसंवादोऽपि विशिष्टभस्मादिकार्यदर्शनोत्पन्नानुमानप्रवृत्तिलक्षणः कचिदस्त्येव, अनागतार्थविषये नु(तु) वाक्ये चन्द्रग्रहणोपदेशादौ प्रत्यक्षप्रमाणे(?ण)प्रवृत्तिलक्षणोऽनुभूयत एव । 'अभूद् राजा श्रीहर्षादिः' 'भविष्यति शंखचक्रवर्ती इत्यादिश्रुतेर्न प्रतिबन्धाभावोऽविसंवादाभावेऽपि तदुपदेष्टुः तदर्शनस्याभावाऽसिद्धेः । 'भावोऽपि कथं सिद्धः' इति चेत् ? अत एव संशयोऽस्तु, न चैतावता प्रतिबन्धभावः सिध्यति, संशयस्तु स्यात् यथा अनर्थित्वादप्रवृत्तस्य प्रथमोत्पन्नप्रत्यक्षे । न चैकत्र संशये सर्वत्र संशयः, प्रत्यक्षेऽपि प्रसंगात् । संशयितप्रतिबन्धात् तु वाक्यात् संशयादपि प्रवृत्तिः यथाऽनभ्यासावस्थायां अवस्तु में भी वस्तुत्व का अध्यवसायी होता है इसलिये भ्रान्त है । भ्रान्त होते हुए भी परम्परया स्वलक्षण से संलग्न होता है इसलिये मणिप्रभा में मणिबुद्धि की तरह प्रमाण माना जाता है"- तो ऐसा कथन अयोग्य है क्योंकि दूरस्थ वृक्षादि के ज्ञान में साक्षात्कार का ही अनुभव होता है अनुमानात्मकता का नहीं, फिर भी आगे निर्विकल्पज्ञानवाद के निषेध का अवसर आयेगा उस वक्त इस के बारे में विचार कर लेंगे।
★ भूत और भविष्य सर्वथा असत् नहीं★ यदि यह कहा जाय - सामान्यावलम्बि शब्दप्रवृत्ति भूत और भविष्यकालिन पदार्थों में भी होती है, इस का मतलब यह हुआ कि सामान्य भूत-भविष्यत् असत् पदार्थों का भी धर्म है, जो असत्-अवस्तु का धर्म हो वह स्वयं भी असत् या अवस्तु ही होना चाहिये ।- तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि भूत और भविष्यत् भाव सर्वथा असत् नहीं होते, अपने अपने काल के सम्बन्धिरूप में वे भी अपने अपने काल में सत् ही होते हैं । यदि वर्तमान में भूत-भविष्य के न होने मात्र से उसे असत् माना जाय तब तो अपने ज्ञानकाल में यानी दूसरे क्षण में प्रत्यक्ष का विषय स्वलक्षण का भी अस्तित्व नहीं होता तो वह भी अवस्तु मानना होगा ।
प्रश्न :- भूत-भविष्यत् भाव को अपने अपने काल में सत् होने से वस्तुरूप मान लिया जाय तो भी प्रश्न यह है कि जो काल से व्यवहित है (दूरवर्ती है) ऐसे भूत-भावि पदार्थों के साथ, विना किसी सम्बन्ध के शब्द कैसे उन का बोधक हो सकेगा ?
____ उत्तर :- शब्द वर्तमानकालीन है और अर्थ भूत या भविष्यत्कालीन है, फिर भी परम्परा से शब्द उन भूत-भावि अर्थों के दर्शन के साथ सम्बद्ध होता है, क्योंकि शब्दप्रयोग परम्परया दर्शनमूलक ही होता है इस लिये वह भूत-भावि भाव का भी बोधक हो सकता है । जैसे, भूत-भावि भाव के अनुमान के लिये उन के असत् होते हुए भी व्याप्तिज्ञान से उसका ग्रहण माना जाता है, वहाँ परम्परया ही लिंग को भूत-भावि भावों के साथ सम्बद्ध माना जाता है । यदि कहें कि- इस तरह यदि भूत-भावि भावों का भी शब्द से बोध मानेंगे तो शब्द से त्रिकालज्ञान हो जाने का अतिप्रसंग होगा- तो ऐसा अतिप्रसंग भूत-भावि भाव ग्राहक अनुमान के बारे में भी प्रसक्त होगा । “यहाँ अग्नि था' इत्यादि शब्द विसंवादी है ऐसा भी नहीं है, क्योंकि 'यहाँ अग्नि था' इन शब्दों को सुनने के बाद वहाँ विशिष्ट गुणधर्मयुक्त भस्म को देख कर, कार्य भस्म से कारण अग्नि के अनुमान की प्रवृत्ति होती है इस तरह कभी कभी अविसंवाद भी उपलब्ध होता है । भावि पदार्थ के बोधक, चन्द्र-सूर्यग्रहणादि का सूचक किसी ज्योतिर्विद् के वाक्य का भी बाद में प्रवृत्त होने वाले प्रत्यक्ष से अविसंवाद
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