Book Title: Sanmati Tark Prakaran Part 02
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Divya Darshan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 371
________________ ३५२ श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् द्वितीयोऽपि हेतुरसिद्धः, विद्यमानत्वात् साध्यस्याभिव्यक्त्युदेकानुद्रेकाद्यवस्थाविशेषस्येति वक्तव्यम्, यतोऽत्र विकल्पद्वयम् - किमसावतिशयोऽभिव्यक्त्यवस्थातः प्रागासीत्, आहोश्विन्नेति ? यद्यासीत् न तसिद्धतादिदूषणं प्रयोगद्वयोपन्यस्तहेतुद्वयस्य। अथ नासीत् एवमप्यतिशयः कथं हेतुभ्यः प्रादुर्भावमश्नुवीत? 'असदकरणात्' इति भवद्भिरभ्युपगतत्वात् । तत् स्थितम् - सदकरणाद् न सत् कार्यम् । यथोक्तनीत्या सत्कार्यवादे साध्यस्याभावादुपादानग्रहणमप्यनुपपन्नं स्यात् तत्साध्यफलवांछयैव प्रेक्षावद्भिपादानपरिग्रहात् । 'नियतादेव च क्षीरादेर्दध्यादीनामुद्भवः' इत्येतदप्यनुपपन्नं स्यात् साध्यस्याऽसम्भवादेव । यतः सर्वस्मात् सम्भवाभाव एव नियताज्जन्मेत्युच्यते, तच्च सत्कार्यवादपक्षे न घटमानकम् । तथा 'शक्तस्य शक्यकरणात्' इत्येतदपि सत्कार्यवादे न युक्तिसंगतम् साध्याभावादेव । यतो यदि प्रसक्त होता है । जब कार्य का कार्यत्व ही लुप्त हो गया तो कारणों का कारणत्व भी स्वत: लुप्त हो जायेगा । कारण माने जाने वाले मूलप्रकृति, बीज या दुग्धादि पदार्थ उन के संभवित कार्य महत्, अंकुर या दहीं आदि के जनक नहीं रहेंगे, क्योंकि उपरोक्त विधानानुसार अजन्य होने के कारण महत् आदि, उन कारणों से साध्य = निष्पाद्य नहीं है। उदा० मक्तात्मा कतकत्य होने से. उस का कोई साध्य अब शेष नहीं है इसलिये वे किसी भी सिद्धि के कारण नहीं होते । ___ यहाँ ऐसा अनुमानप्रयोग है - जिस का कुछ भी साध्य नहीं वह किसी का कारण नहीं होता, जैसे चैतन्य कारणरूप से अभिमत प्रकृति आदि भी ऐसे हैं जिन का कोई साध्य नहीं है। यहाँ हेतु व्यापकानुपलब्धिस्वरूप है। कारणत्व का व्यापक है ससाध्यत्व उस की अनुपलब्धि रूप हेतु, प्रकृति आदि में कारणत्व की निवृत्ति को सिद्ध करता है। यहाँ दोनों प्रयोगों में नित्य चैतन्य का दृष्टान्त दिया गया है, नित्य चैतन्य सांख्यवादी को मान्य है किन्तु प्रतिवादी को मान्य नहीं है इस लिये प्रश्न हो सकता है कि दृष्टान्त उभयपक्षमान्य नहीं है तब यह अनुमानप्रयोग कैसे सफल होगा ? उत्तर यह है कि यहाँ प्रतिवादी पर्यायवादी को दहीं आदि में अजन्यत्व की सिद्धि और बीज आदि में अकारणत्व की सिद्धि इष्ट नहीं है किन्तु दोनों प्रयोगों से सत्कार्यवाद में प्रसंगापादन करना इष्ट है । प्रसंगापादन में तो स्वमत में सिद्ध न हो किंतु परवादी के मत में सिद्ध हो ऐसा दृष्टान्त देने में कोई बाध नहीं है । कोई सांख्य - एकदेशी अगर ऐसा कहें कि - ‘दूसरे प्रयोग में नित्य चैतन्य को अकर्ता (अकारण) समझ कर दृष्टान्त बनाया है, किंतु हम तो चेतनपुरुष को प्रतिबिम्बोदय में हेतुता मान कर भोग के कर्ता भी मानते हैं अत: दृष्टान्त में अकारणत्व असिद्ध है।' - तो इस असिद्धि का वारण करने के लिये मुक्तात्मा को दृष्टान्त बनायेंगे । एकदेशी के मत में भी मुक्तात्मा प्रतिबिम्बहेतु न होने से भोगकर्ता नहीं होता अत: अकारण ही होता है। ★हेतुओं में असिद्धि उद्भावन का निष्फल प्रयास ★ सांख्यवादी : प्रथम प्रयोग में जो 'सर्व प्रकार से सत्त्व' हेतु किया है यदि उस में अभिव्यक्ति प्रकार भी शामिल है तो हमारे मत से वह हेतु असिद्ध हो जायेगा । क्योंकि उत्पत्ति के पहले कारण में कार्य का अभिव्यक्ति रूप से सत्त्व हम नहीं मानते हैं । 'तो किस रूप से है ?' इस का उत्तर है 'शक्ति रूप से यदि इस दोष को टालने के लिये 'सर्वप्रकार से' । यह विशेषण छोड दिया जाय तो 'उत्पत्ति के पूर्व जो अपने कारण में सत् होता है' ऐसा हेतु अजन्यत्व साध्य का द्रोही बन जायेगा, क्योंकि शक्तिरूप से कारण में सत् होने वाला कार्य भी कारकव्यापार से अभिव्यक्ति आदि अतिशय को ले कर उत्पन्न होता ही है। अत: वहाँ हेतु है, लेकिन 'अजन्यत्व' साध्य नहीं है । फलत: प्रथम प्रयोग से जो महत् आदि में अकार्यत्व आपादन किया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436