Book Title: Sanmati Tark Prakaran Part 02
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 414
________________ द्वितीयः खण्डः - का० - ३ तथाविधस्य तस्यापि वस्तुनः क्षणवृत्तिनः । ब्रूते समभिरूढस्तु संज्ञाभेदेन भिन्नताम् ॥ [ एवंभूतनयाभिप्रायः ] शब्दाभिधेयक्रियापरिणतिवेलायामेव ' तद् वस्तु' इति भूत एवंभूतः प्राह यथा संज्ञाभेदाद् भेदवद् वस्तु तथा क्रियाभेदादपि । सा च क्रिया तद्धेत्री यदैव तामाविशति तदैव तन्निमित्तं तत्तद्वयपपदेशमासादयति । नान्यदेत्यतिप्रसंगात् । तथाहि - यदा 'घटते' तदैवासौ 'घट' न पुनः 'घटितवान् ' 'घटिप्यते' वा 'घटः' इति व्यपदेष्टुं युक्तः सर्ववस्तूनां घटतापत्तिप्रसंगात् । अपि च चेष्टासमय एव चक्षुरादिव्यापारसमुद्भूतशब्दानुविद्धप्रत्ययमास्कन्दन्ति चेष्टावन्तः पदार्थाः । यथावस्थितार्थप्रतिभास एव च वस्तूनां - समभिरूढनय मानता है कि एक ही अर्थ का अनेक शब्दों से प्रतिपादन करना अनुचित है, अतः घट-कुट-कुम्भ इत्यादि शब्दभेद से अर्थ भी भिन्न भिन्न होता है । अथवा घटादि सर्व शब्द विभिन्न क्रियावाचक होने से, अपनी अपनी विभिन्न व्युत्पत्ति के अनुसार भिन्न भिन्न अर्थ के ही वाचक हैं । घटादि शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार है- 'घटते' इति घट:- यानी जो जलाहरण चेष्टा करता है । 'कुटति' इति कुट:, यानी जो कुटन क्रियान्वित होता है । तथा 'भाति' इति कुम्भः यानी जो पृथ्वीतल पर झमक रहा है । इस प्रकार तीनों की व्युत्पत्ति में क्रियास्वरूप निमित्त भिन्न भिन्न है इसलिये उसका नैमित्तिक अर्थात् निमित्तप्रयोज्य अर्थ भी भिन्न भिन्न होना चाहिये । इस स्थिति में 'घट' शब्द के उच्चार से कुट का बोध कैसे होगा ? जब कि कुट का तो घटशब्द से प्रतिपादन हुआ नहीं । ३९५ जैसे सामान्य अग्नि के बोध के लिये अग्निशब्द का प्रयोग होता है, किन्तु जब 'पावक' शब्द का प्रयोग होता है तब पवित्रताकारक शक्तिविशेष का ही अन्वय- व्यतिरेक से बोध होता है, भले ही लोग में 'अग्नि' और 'पावक' शब्द पर्यायवाची कहे जाते हो । इसी तरह घटन- कुटन आदि शक्तियों में भी भेद स्पष्ट प्रतीत होता है, इसलिये पर्यायवाची माने जाने वाले घट-कुट आदि शब्द वास्तव में भिन्नार्थक ही हैं, एक अर्थ के अभिनिवेशी यानी बोधक नहीं है - यह समभिरुढ नय का वक्तव्य है । कहा है. - "क्षणिक एवं लिंगादिभेद से भिन्न वस्तु का भी, समभिरूढनय संज्ञाभेद से भेद मानता है ।" ★ एवंभूत - शब्दवाच्यक्रिया से आविष्ट हो वही वस्तु ★ Jain Educationa International ' एवंभूत' शब्द में ' एवं ' शब्द क्रियापरिणति का वाचक है, और 'भूत' शब्द आक्रान्त अथवा मुद्रित अर्थ का वाचक है । तात्पर्य यह है कि, शब्द किसी न किसी धातु से बना होता है और धातु क्रियार्थक होता है, अतः कोई भी शब्द किसी एक क्रिया का सूचन करता है - जैसे 'शास्त्र' शब्द शासन और त्राण क्रिया का वाचक होता है । एवंभूत नय कहता है कि किसी एक शब्द से सूचित क्रिया में जब कोई वस्तु परिणत हो तभी वह उस शब्द की वाच्य होती है अन्यथा नहीं, जैसे 'पाचक' शब्द से पाककर्त्ता वाच्य तभी होता है जब वह पाककर्त्ता चैत्रादि व्यक्ति पचनक्रिया- पकाने की क्रिया कर रहा हो । अन्य काल में उसके लिये 'पाचक' शब्द का प्रयोग औपचारिक हो जाता है, वास्तव नहीं । एवंभूतनय उपचार को मान्य नहीं करता । अतः उसका कहना यह है कि संज्ञाभेद से जब वस्तुभेद समभिरूढनय में मान्य है तो एक कदम आगे बढ़ *. कुटू प्रथमगण के धातु का अर्थ है १ बक्र होना, २ टेढा करना या झुकाना, ३- बेइमानी करना या धोखा देना । किसी एक कुटनक्रिया से अन्वित हो वह कुट है 1 For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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