Book Title: Sanmati Tark Prakaran Part 02
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 379
________________ ३६० श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् त्रैगुण्यस्याऽविशेषेपि न सर्व सर्वकारकम् । 'यद्वत् तद्वदसत्त्वेऽपिन (सर्व) सर्वकारकम् ॥ [तत्त्वसं० का० २८] अभ्युपगमवादेन च 'यद्वत् तद्वत्' इति साम्यमुक्तम्, न पुनस्तदस्ति । तथाहि - सत्यपि कार्यकारणयोर्भेदे कस्यचित् किंचित् कारणं भवति - स्वहेतुपरम्परायातत्वात् तथाभूतस्वभावप्रतिनियमस्य - अभेदे च तयोरेकस्यैकत्रैकस्मिन्नेव काले हेतुत्वमहेतुत्वं चान्योन्यविरुद्धं कथं सम्भवेत् - विरुद्ध धर्माध्यासनिबन्धनत्वात् वस्तुभेदस्य ? तदुक्तम् - [प्र० वा० - १७४ उत्त० १७५ पूर्वा०] "भेदे हि कारणं किंचिद् वस्तुधर्मतया भवेत् ॥ अभेदे तु विरुद्धयेते तस्यैकस्य क्रियाऽक्रिये" प्रभ: सभी हेतु जब विना किसी पक्षपात, असत् के ही उत्पादक हैं तो वे अमुक ही असत् को उत्पन्न करे, अमुक असत् को न करें . यानी सभी हेतु सभी असत् के उत्पादक नहीं होते - ऐसा पक्षपातभरा विधान क्यों करते हैं ? उत्तर : यह प्रश्न निरर्थक है क्योंकि सत्कार्यवाद में भी ऐसा प्रश्न हो सकता है, देखिये - सभी हेतु जब विना किसी पक्षपात सत् के ही उत्पादक हैं तो सभी हेतु. सभी सत् के उत्पादक नहीं होते ऐसा क्यों ? ऐसा प्रश्न असत्कार्यवादी भी उठा सकते हैं । आप के मत में असत् तो कोई है ही नहीं जिस से कि उस के अकरण का समर्थन किया जा सके । [उत्पत्ति के पूर्व सब कुछ सत् होता है इस लिये गगनकुसुम भी जब उस की उत्पत्ति नहीं हुयी तब सत् होना ही चाहिये । जिस की उत्पत्ति अब तक नहीं हुई ऐसे तो असंख्य पदार्थ हैं जिन में गगनकुसुम भी शामिल है। विना प्रमाण आप यह भेद नहीं कर सकते हैं कि उत्पत्ति के पूर्व घटादि ही सत् होता है, गगनकुसुमादि नहीं । इस स्थिति में आप के मत में असत् तो कुछ हो ही नहीं सकता जिस का अकरण बताया जा सके ।] यदि कहें कि - 'कारणों में सर्वसाधारण (जिस में गगनकुसुम भी शामिल है ऐसे सर्व) की उत्पादन शक्ति नहीं होती किन्तु मर्यादित वस्तु के जनन की ही शक्ति होती है इस लिये उत्पत्ति के पूर्व सत् होने पर भी गगनकुसुम का करण नहीं होता' - तो ऐसा उत्तर असत्कार्यवाद में भी तय्यार है जो पहले ही कह आये हैं । तत्त्वसंग्रह में कहा है कि - 'जैसे सब कुछ त्रिगुणमय होते हुये भी सभी का कारण नहीं है।' [ऐसे ही असत्कार्यवाद में सब कुछ उत्पत्ति के पूर्व असत् होते हुये भी, सब सभी का कारण नहीं है ।] कार्य-कारणभेद पक्ष में विशिष्ट नियम संगत ★ तत्त्वसंग्रहकार ने साम्य दिखाते हुए जो कहा कि - जैसे आप के मत में है वैसा हमारे मत में भी कह सकते हैं - यह सिर्फ अभ्युपगमवाद से यानी एक बार कृत्रिम रूप से प्रतिवादी का मत स्वीकार कर के कहा है । वास्तव में कोई साम्य नहीं है । कार्य-कारण का भेद मानने वाले हमारे पक्ष में 'किसी एक कार्य का कोई एक ही कारण हो' ऐसा सुसंगत है क्योंकि यवांकुर की उत्पत्ति यवबीज से ही होती है न कि वीहीबीज से, इस प्रकार के स्वभाव का विशिष्ट नियम अपने हेतुओं की वंशपरम्परा से ही चला आता है । जब कि अभेदवाद में तो यवांकुर और व्रीहिअंकुर दोनों के साथ उत्पत्ति के पहले कारण को समानरूप से अभेद है फिर भी किसी एक यवबीज से एक स्थान में एक ही काल में यवांकुर का हेतुत्व और व्रीहिअंकुर का अहेतुत्व, परस्पर विरुद्ध ये दोनों धर्म कैसे सुसंगत हो पायेंगे ? विरुद्धधर्माध्यास तो वस्तुभेदमूलक होता है, - पूर्वमुद्रिते उत्तरार्द्धम् न विद्यते, लिम्बडी-आदर्शे तु विद्यते । • पूर्वमुद्रिते तु 'हेतुकत्वं' इत्येव पाठः । अत्र लिम्बडीआदर्शानुसार्युपन्यस्तः । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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