Book Title: Samyaktva Vimarsh Author(s): Ratanlal Doshi Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh View full book textPage 8
________________ मेरा निवेदन DIKO भादरणीय धर्मबन्धुओ! मेरी मातेश्वरी के शरीर मे व्याधि उत्पन्न हुई, तब उनकी इच्छा हुई कि मनुष्य जीवन पाकर यथासंभव धर्मसेवा करनी चाहिए। उन्होने कहा-"अपने समाज मे धर्मभावना बहुत कम होती जा रही है । जो धर्मप्रेम २५, ३० वर्ष पहले दिखाई देता था, वह अब दिखाई नहीं देता। जिनके माता-पिता और दादा दादी धर्मपरायण थे,उनके पुत्र पौत्रो मे धर्मभावना नही रही। वे धर्म से वचित रहने लगे और कोई अंट-सट बाते कर के धर्म की निन्दा भी करते है । यह दशा देखकर दुःख होता है। ऐसे लोगो को समझाने और धर्मभावना को जमाने के लिए ज्ञान का प्रचार होना जरूरी है । धर्म पर श्रद्धा जमाने के लिए वैसी पुस्तक का प्रचार हो, तो उसे पढकर समझदार लोग अपने धर्म में विश्वास करे, उनके मन में धर्म का प्रेम बढे ।" उनकी ऐसी भावना देखकर मैने कहा-"आपकी आज्ञानुसार वैसी पुस्तक का प्रचार किया जायगा।" थोडं ही दिन बाद 'सम्यगदर्शन' मे "सम्यक्त्व-विमर्श" के प्रकाशन की बात पढने में आई । मैने सोचा-यह पुस्तक हमारे धर्मबन्धुओ के लिए बडी उपयोगी होगी। इसमे सम्यक्त्व और मिथ्यात्व का विस्तार के साथ हृदयस्पर्शी विवेचन हुआ है। यदि यह पुस्तक प्रचारितPage Navigation
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