Book Title: Samvar Muni Charitram
Author(s): Vardhamansuri, Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 31
________________ संवरमुनि चरित्रं सान्वय भाषांतर ॥ २९॥ ॥ २९॥ KABLOSUDESSALISALUCHEOPHR कृतावैरः क्रूरेण सह मोहमहीभुजा । तस्थौ नैकत्र कुत्रापि सोऽयमुद्यच्छवी रवी ॥ ९५॥ ___ अन्वयः-क्रूरेण मोह महीभुजा सह कृतार्द्र वैरः सः अयं उद्यत् छवौ रवौ कुत्र अपि एकत्र न तस्थौ. ॥ ९५ ।। अर्थः-क्रूर एवा मोहराजासाथे करेल छे दृढ वैर जेधे, एवा ते मुनिराज सूर्य उग्याचद यांय पण एक स्थानके रहेता नही. स जाग्रत्कर्मसंग्रामव्यग्रीभृतमना इव । उद्दधे पदयोर्भग्नान्नोत्कटानपि कण्टकान् ॥ ९६ ॥ ___ अन्वयः-जाग्रत् कर्म संग्राम व्यग्रीभृत मनाः इव सः पदयोः भग्नान उत्कटान् कंटकान् अपि न उद्दधे ॥ ९६ । अर्थः-कर्मोरूपी शत्रुओसाथे आदरेली लडाइमांज जाणे (पोतार्नु ) मन परोवायु होय नही ! तेम ते मुनिराजे (पोताना) पगोमां भांगेला तीक्ष्ण कांटाओ पण कहाड्या नही. ॥ २६ ॥ उदासीन इवास्थानकृतरागापराधयोः । चकर्ष चक्षुपोरेष न तृणं न रजःकणम् ॥ ९७ ॥ अन्वयः-अस्थान कृत राग अपराधयोः चक्षुषोः उदासीनः इव एषः तणं रजः कणं न चकर्ष. ॥ ९७ ॥ अर्थ:-अयोग्य स्थाने करेला रागरूपी अपराधवाळा बन्ने चक्षुभोप्रते जाणे बेदरकार थया होय नहीं ! एवा ते मुनिराजे तेमाथी तणखलु के रजनो कण (पण) कहाड्यां नही. ॥ ९७ ॥ आसन्नविलसन्मुक्तिवधूलीनमना इव । चरन्मार्ग न तत्याज तोवकर्करमप्यसौ ॥ ९८॥ अन्नयः-आसन्न विलसत् मुक्ति वधु लीन मनाः इव, असौ मार्ग चरन तीन कर्करं अपि न तत्याज. ॥ ९८ ।। 5-495-45 +4+4+443

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