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विक्रमादित्य संबंधी जैन साहित्य
(१) संस्कृत ( मौलिक ) ग्रन्थ
: १४६ :
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रचनासमय
अन्यनाम
रचयिता
।
प्राप्ति एवं प्रकाशनस्थान
अज्ञात
१ सं. १२९०-९४ पंचदंडात्मक विक्रमचरित्र
हीरालाल हंसराज जामनगर
(उ. जे. सा. सं. इ.) २ १३ थीं या १५ वीं शताब्दी | सिंहासनद्वात्रिशिका' क्षेमंकर
प्र. उ. लाहौरके सूचिपत्र में ३ सं. १५७१ के लगभग विक्रमचरित्र'
कासहृदगच्छीय उ. देवमूर्ति | सं. १४९६ लिखित प्रति
लीबडी भं. ४ सं. १४९० माघ शुदि १४ विक्रमचरित्र (पचदंड) ग्रं. २५०० साधुपूर्णिमा रामचंद्रसूरि दानागर भंडार बीकानेर
रवि खंभात ५ सं. १४९० माघ शुदि १४ । विक्रमचन्त्रि (सिंहासन द्वात्रि
"
उ. अ. सा सं. इ. __ रवि दर्भिकायाम... | शिका)
१ कई विद्वान इसे १३ वीं शताब्दीका बतलाते हैं । घटपुरुषचरित्रके कर्ता क्षेमंकर १५ वीं शताब्दीमें हुए हैं। इस सिंहासनद्वात्रिंशिकामें इसका आधार महाराष्ट्री भापाका उक्त कथानक बतलाया है पर वह अभी अज्ञात है।।
" श्रीविक्रमादित्यनरेश्वरस्य चरित्रमेतत् कविभिनिबद्धैः । पुरा महाराष्ट्रवरिष्टभाषामयं महाश्चर्यकरं नराणाम् ॥
क्षेमंकरेण मुनिना वरं गद्यपद्यबंधेन युक्तिकृतसंस्कृतबंधुरेण । विश्वोपकारविलसद गुणकीर्तिनायं चक्रे चिरामरपंडितहर्षहेतुः॥" बीकानेर स्टेट लायब्रेरीमें २, बृहद्भडारमें २, हमारे संग्रहमें भी इसकी १ अपूर्ण प्रति है।
२ इसके १४ सर्गोके नाम इस प्रकार है-विक्रमोत्पत्ति, राज्यप्राप्ति, सुवर्णपुरुषलाभ, पंचदंडछत्रप्राप्ति, द्वादशावर्तवन्दनकफल. सूचककौतुक नयीक्षि, देवपूजाफलसूची, राज्यागमन, विक्रमप्रतिबोध, जिनधर्मप्रभावसूचक हंसावलीविवाह, विनयप्रभाव, नमस्कारप्रभाव, सत्त्वाधिककथाकोष, दानधर्मप्रभाव, स्वर्गारोहण, सिंहासनद्वात्रिंशिका । ( जै. सा. सं. इ. पृ. ४६८ )
इस ग्रंथकीं एक और प्रति सं. १४८२ लिखित बम्बई रो. ए. सो. के नं. १७७३ में है। ३ इसका गुजराती अनुवाद (स्व. मणिलाल नभुभाईका ) बडोदेके केजवणी खातासे सं. १९५१ में प्रकाशित हुआ है।
[ સમ્રાટ્ર વિક્રમાદિત્ય
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