Book Title: Samrat Vikramaditya Yane Avantino Suvarna Yug
Author(s): Mangaldas Trikamdas Zaveri
Publisher: Prachin Sahitya Sanshodhak Karyalay

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Page 213
________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat परिशिष्ट २ ] । अज्ञात ६ सं. १९९९ | विक्रमरित्र ग्रं. ६७१२ तपागच्छोय शुभशील |प्र. हेमचंद्राचार्य पं. अमदावाद सं. १५.४ के लगभग सिंहासनद्वात्रिंशिका | धर्मघोषगच्छीय राजवल्लभ |प्रति-गोविंद पुस्तकालय सं. १६१२ लि. बीकानेर विक्रमचरित्र पच ३६ राममेरु जीरा (पंजाब) भंडार इंद्रसूरि , पंचदंबंध उ. जैन ग्रंथावली पृ. २५१ पूर्णचंद्र (२) प्रबंधसंग्रहोके अन्तर्गत सामग्री १ सं. १३३४ चै. शु.७ प्रभावकचरित्र प्रभाचंद्रभि वृद्धवादिप्रबंध २ सं १३६१ वै. शु. १५ प्रबंधचिंतामणि मेरुतुंगसरि विकमार्कप्रबंध वर्धमानपुर ३ सं. १४०५ दिल्ली प्रबंध कोष राजशेखरसूरि विक्रमादित्यप्रबंध (चतुर्विशति प्रबंध) सिद्धसेन प्रबंध ४ १३ वीं से १५ वीं शताब्दी । पुरातन प्रबंध संग्रह विविधषिक्रमार्कप्रबंध ५ अज्ञातकर्तक कई प्रबंध एवं चरित्र जैन भंडारोमें प्राप्त हैं। (नं. १ से ४ ग्रंथ खिधी जैन ग्रन्थमालासे प्रकाशित है) ४ इसकी प्रति बीकानेरके जयचंद्रजीके भंडारमें भी है। इसके १२ स!के नाम इस प्रकार हैं-अग्निवेतालोत्पत्ति, सुकोमला. पाणिग्रहण, खपरचोरोत्पत्तिनिग्रह, विक्रमचरित्रजन्म, अवदातकरण--पितृमिलन, शुभमतिरूपमतीपाणिग्रहण, विक्रमचरित्र कनकीनाम, सिद्धसेनप्रबोध-सुधाअनृणीकरण-कीर्तिस्तंभविरचन, शत्रुनयोद्धार, पंचदंडवर्णन, कालोदासोत्पत्ति, सौभाग्य सुन्दरीपरिणयन-तत्परीक्षाकरणाद्यघटकुमारमिलन, विक्रमादित्यस्वर्गगमन, चतुश्चामरहारिणोवर्णन विक्रमचरित्रराज्योपवेशन यात्राकरण स्वर्गगमन । ५ इसकी यह एक हो प्रति पत्र ४८ की बीकानेरके गोविंदपुस्तकालयमें मिली है। इसमें इससे पूर्व सिद्धसेनरचित उक्त कथाका उल्लेख है, जैसे-" पूर्वं श्रीसिद्धसेनेन विक्रमादित्यकोर्तनम् । कृतं सिंहासनस्थानं जगजनमनोहरम् ॥ १॥" अंतमें कर्ताने अपना परिचय एवं गद्यबंधसे उक्त पद्यबंध कथा रचनेका निर्देश इस प्रकार किया हैगच्छः श्रीधर्मघोषस्तदनु सुविहितश्चक्रचूडामणित्वं वादीन्द्रो धर्मसूरिनृपवरतिलको बोधको वीसलस्य । जित्वा वादान्यनेकविविधगुणगणा शासने चोन्नतिं यः यस्य श्रीमूलपट्टे त्रिजगजयकरो श्रीयशोभद्रमूरिः ॥ ७२ ॥ श्रोविक्रमार्कगुणवर्णनगद्यधातू पये कृता सुगमता जनकौतुकाय । सूरेन्द्रशियनहिचन्द्रगुणाधिकेन श्रीराजालभता वरपाठकेन ॥७३॥ :08: www.umaragyanbhandar.com

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