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(३) लोकभाषामें विक्रमविषयक जैन साहित्य १सं. १४९९
। विक्रमचरित्र कुमाररास |बडतपागच्छीय साधुकीति उ. ज. गु.क. भा. १ पृ. ३५ सं. १५६५ जे. शु. विकमसेन चौपह
पूर्णिमागच्छोय उदयभानु ३ सं. १५९६ के लगभग विक्रमरास
तपागच्छीय धर्मसिंह ४ सं. १६३८ मा. सु. ७ विक्रमरा
आगम विडालंष गच्छीय
२४७ र. उज्जयिनी
मंगलमाणिक्य ५ सं. १७२२१ पो. सु. ८ विक्रमादित्यचरित्र
तपागच्छीब मान विजय अभयसिंह भंडार बु खेमतानगर ६ सं. १७१४ काती कुडेनगर | विक्रमसेन चौपा
तपागच्छीय मानसागा वर्द्धमान भंडार ७ सं १९२४ पो. प. १० विक्रमादित्यराप्त
तपागच्छीय परमसागर | उ. जै. गु. भा. ३ पृ. १२२८ गढवाडा ८ सं. १७३७ के लगभग
खरतर दयातिलक | अपूर्ण बीकानेर ६ जैन मुनिके लिये चतुर्मासके अतिरिक्त एक स्थानपर एक महिनेसे अधिक नहीं रहने का विधान होनेसे वे हर समय भ्रमणशील रहते हैं । इसीसे उनकी भाषामें कई भाषाओंका थोडा बहुत संमिश्रण हो जाता है। अतः हमने उक्त तालिकाके ग्रंथोंको गुजरातो हिन्दी राजस्थानी भाषाके अलग अलग न रखकर लोकभाषा शीर्षकके नीचे दे दिये हैं। फिर भी ईनमें सबसे अधिक गुजराती, उससे कम राजस्थानी एवं कुछ ग्रंथोंमें हिन्दीका संमिश्रण रूप हैं।
७ इसमें सिंहासन बत्तीसी, वैतालपचीसो, पंचदंडछत्र, लीलावती, परकायप्रवेश, शीलमती, खापराचोर आदि विक्रम संबंधो कथाओंका उल्लेख हैं।
८ इस नामका इससे भिन्न अन्य जैन चौपइका आदिपत्र हमारे संग्रहमें है ।
९ जै. श्वे. को. बम्बईसे इसके २ भाग प्रकाशित हुए हैं, तीसरा अभी छप रहा है । ये तोनों भाग जैन भाषासाहित्यको जानकारीके लिये एवं संस्कृत-प्राकृत श्वे. ग्रंथों की जानकारीके लिये और यहींसे प्रकाशित जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास-ये चारों ग्रन्थ अपूर्व हैं । इन चारोंके सम्पादक-संग्राहक श्रीमोहनलाल दलीचंद देसाई हैं।
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[ સમ્રાટું વિક્રમાદિત્ય
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