Book Title: Samrat Vikramaditya Yane Avantino Suvarna Yug
Author(s): Mangaldas Trikamdas Zaveri
Publisher: Prachin Sahitya Sanshodhak Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 214
________________ :१४८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat (३) लोकभाषामें विक्रमविषयक जैन साहित्य १सं. १४९९ । विक्रमचरित्र कुमाररास |बडतपागच्छीय साधुकीति उ. ज. गु.क. भा. १ पृ. ३५ सं. १५६५ जे. शु. विकमसेन चौपह पूर्णिमागच्छोय उदयभानु ३ सं. १५९६ के लगभग विक्रमरास तपागच्छीय धर्मसिंह ४ सं. १६३८ मा. सु. ७ विक्रमरा आगम विडालंष गच्छीय २४७ र. उज्जयिनी मंगलमाणिक्य ५ सं. १७२२१ पो. सु. ८ विक्रमादित्यचरित्र तपागच्छीब मान विजय अभयसिंह भंडार बु खेमतानगर ६ सं. १७१४ काती कुडेनगर | विक्रमसेन चौपा तपागच्छीय मानसागा वर्द्धमान भंडार ७ सं १९२४ पो. प. १० विक्रमादित्यराप्त तपागच्छीय परमसागर | उ. जै. गु. भा. ३ पृ. १२२८ गढवाडा ८ सं. १७३७ के लगभग खरतर दयातिलक | अपूर्ण बीकानेर ६ जैन मुनिके लिये चतुर्मासके अतिरिक्त एक स्थानपर एक महिनेसे अधिक नहीं रहने का विधान होनेसे वे हर समय भ्रमणशील रहते हैं । इसीसे उनकी भाषामें कई भाषाओंका थोडा बहुत संमिश्रण हो जाता है। अतः हमने उक्त तालिकाके ग्रंथोंको गुजरातो हिन्दी राजस्थानी भाषाके अलग अलग न रखकर लोकभाषा शीर्षकके नीचे दे दिये हैं। फिर भी ईनमें सबसे अधिक गुजराती, उससे कम राजस्थानी एवं कुछ ग्रंथोंमें हिन्दीका संमिश्रण रूप हैं। ७ इसमें सिंहासन बत्तीसी, वैतालपचीसो, पंचदंडछत्र, लीलावती, परकायप्रवेश, शीलमती, खापराचोर आदि विक्रम संबंधो कथाओंका उल्लेख हैं। ८ इस नामका इससे भिन्न अन्य जैन चौपइका आदिपत्र हमारे संग्रहमें है । ९ जै. श्वे. को. बम्बईसे इसके २ भाग प्रकाशित हुए हैं, तीसरा अभी छप रहा है । ये तोनों भाग जैन भाषासाहित्यको जानकारीके लिये एवं संस्कृत-प्राकृत श्वे. ग्रंथों की जानकारीके लिये और यहींसे प्रकाशित जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास-ये चारों ग्रन्थ अपूर्व हैं । इन चारोंके सम्पादक-संग्राहक श्रीमोहनलाल दलीचंद देसाई हैं। www.umaragyanbhandar.com [ સમ્રાટું વિક્રમાદિત્ય -

Loading...

Page Navigation
1 ... 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246