Book Title: Samrat Vikramaditya Yane Avantino Suvarna Yug
Author(s): Mangaldas Trikamdas Zaveri
Publisher: Prachin Sahitya Sanshodhak Karyalay

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Page 217
________________ પરિશિષ્ટ ૨ જુ] : १५१: उपर्युक्त सभी रचनाएं घमें हैं। गद्यमे भी पतद विषयक कई ग्रंथ जैन भंडारोंमें पाये जाते हैं, पर उनके रचयिताओंके जन होनेका निश्चित नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार यथाज्ञात विक्रमादित्य संबंधी श्वे. मे. साहित्य के ५५ ग्रंोंको सूची यहाँ प्रकाशित की जारही है। विशेष खोज करने पर और भी अनेकों ग्रन्थ मिलनेका संभव है। इनमेंसे कई ग्रंथोंकी अनेकों प्रतियां बीकानेरके अनेक संग्रहालयों में हैं। यहां स्थानाभावसे केवल एक-दो स्थानोंका ही निर्देश किया गया है। इसके अतिरिक्त जैन कषि कुशललामविरचित माधवानलकामदला चौपाई (सं. १६१६ फागुण शुदि १३ जैसलमेर) में भी विक्रमादित्य के परदुःखभंजनकी कथा आती है। उक्त चोपई, राजस्थानोमें कधि गणपति (सं. १५८४ श्रा. सु.७ आमुदरि) एवं गुजरातीमें दामोदर (सं. १७३७ पूर्व) रचित इसी नामापली रचनाओंके साथ, बडोदा ओरियण्टल सोरीझसे प्रकाशित है। इसी प्रकार रूपमु'नरचित अंबडरास (सं. १८८० जे. सु. ३० बु. अजीमगंज) आदिमें विक्रमके पंचदंड आदि कथानक पाये जाते हैं। आचार्य की बात है कि श्वेतांबर जैनोंने उ.ब कि विक्रमादित्य के सम्बन्धमें ५५ ग्रन्थ बनाये हैं, दिगम्बर समाजके केवल एक ही विक्रमचरित्र (श्रुतसागररचित १६ वीं शताब्दी) का उल्लेख मात्र आरा जैन सिद्धान्त भवन से प्रकाशित प्रशस्तिसंग्रहमें पाया जाता है। वे. नोंके इतने विशाल साहित्य निर्माणके दो प्रध न कारण हैं: १ उन्होंने लोकसाहित्यके सर्जनमें एवं संरक्षण में सदासे बडो दिलचस्पी ली है, इसके प्रमाण स्वरू। विक्रमकथाओंके अतिरिक्त अन्य अनेक कथाओं पर रचित उनके ग्रन्थ है (देखें-जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास पृ. ६०८, ६६१, ६७९): और २ सिद्धसेन दिवाकर नामक वे विद्वानका विक्रमादित्यसे घनिष्ट संबंध (यहां तक कि उनके उपदेशसे विक्रमादित्य के जैनी होने तकका कहा गया है, उसने शत्रुजयकी यात्रा भी की थी)। महान् गौरवशाली विक्रमादित्यी सच्ची श्रद्धांजली यही हो सकती है कि हम उनके चरित्रमय ग्रंथों से विविध दृष्टियोंसे उपयोगी ग्रन्थरत्नोंको चुनचुन कर प्रकाशित करें और उनकी कथाभोंकी गहरी छानबीन कर उनके विशुद्ध इतिहासको प्रकाशमें लावें। आशा ही नहीं, पूरा विश्वास है कि इस लेख का अध्ययन कर हमारे विद्वान उक्त कार्यमें शीघ्र ही अग्रसर होंगे। लेखक-श्रीयुत् अगरचंद नाहटा (विक्रम-विशेषांक-श्री जैन सत्य प्रकाश-अमदाबाद ) ११. इस लेखमें उल्लिखित दानसागर भंडार, वर्धमान भं., जयचंद्र भं. अभयसिंह भं., कुपाचंद्रसूरि भं., श्री पूज्यनी भं., महिमाभक्ति भं., गोविंदपुस्तकालय, सेठिया लाईबेरी, हमारा संग्रह, बीकानेर स्टेट लायब्रेरी- ये सभी बीकानेर में ही अवस्थित हैं। बीकानेरके जैन भंडारोमें हस्तलिखित लगभग ५० हजार प्रतियां हैं । ईन भंडारोंका परिचय मैंने अपने स्वतंत्र लेखमें दिया है, जो शीघ्र ही प्रकाशित होगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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