Book Title: Samraicca Kaha Vol 01
Author(s): Hermann Jacobi
Publisher: Asiatic Society

View full book text
Previous | Next

Page 855
________________ ७२२ समराइचकहा। सक्षम ११७-. अन्तराई। एत्यन्तरंमि पवत्तो नयरोए जसवो। निवेश्य राणो मचिवहिं। देव, संगडियं 'कुमाग्मन्नरेण देवभामणं ; संपयं देवो पमाणं ति। 'हरिमित्रो राया। भणियो य णेण कुमारो। वच्छ, करेहि महापुरिमकरणिनं, बड्डेहि जसवं नायरयाणं। कुमारेण भणियं । 5 । नाओ प्राणवद । 'पण मिऊण मह अमोयाइएहिर पयट्टो रहालिमुहं पहिणन्दिन्जमाणो अन्ते रेछि पणमिन्जमाणो रायउत्तेहिं थुब्वमाणो भुयङ्गलोएण पुनदनमाणो "पायमलेहिं पत्तो 'रहसमोव, पारूढो रहवरे, उवविठ्ठो पहाणसणंमि। निवेमिया श्रमोयाई जहाजोग्मजाणेसु । १० भणियं च शेणा। पन मारहि, चोएहि पहिमयदेमगमणं पर तुरङ्गमे। ज देवो पाणवेद त्ति भणिऊण चोदया तरजमा । एत्यन्तरंमि समुदादो जयजयारवो, पायं गमणदरं, पलिया रायउत्ता, पणचियाई पायमूलाई, उनमिया भुयङ्गा, खुहियो पेयजणो, पवत्ता केसी, १॥ वियभित्रो कुमरो। एवं च महया विमहेण पेच्छमाणो मबमेयं संवेगभाविधमई ममोरलो रायमगं कुमारो। पवतो पे िपचरौषो नाणविहायो रिद्धिविसेससोहियात्रो जुत्ता विषविभमेहिं तियमपञ्चरोममात्रो मंगवायो CEF.atfor | DF add praefarii PA om. CE पाद DF सयर। (A om. DF मसाजोगजाति। • CE पादः।

Loading...

Page Navigation
1 ... 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934 935 936 937 938