Book Title: Samraicca Kaha Vol 01
Author(s): Hermann Jacobi
Publisher: Asiatic Society

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Page 881
________________ 80 समराइचकहा। सक्षप ३१२ याई विणएण, निविट्ठाई भासणाई, कत्रो श्रामणपरिगहो। पणमिजण जंपियं कुमारेण । ताय, किमेयमणुचियमिवाणुचिट्टिय. अम्बाए वि', कौम न महावित्रो अहं। रादा भणियं। कुमार, नेयमणुचियं । साहियो "देवयावुत्तन्तो। देवौए भणियं । कुमार, गुणपगरिमो तमं अणकहो : पाएसम्म । कुमारेण भणियं । अम्ब, मा एवं भण। गुरवो खु तुमे, गुरुपाएममपाडणमेव कारणं गुणपगरिसम्म । रारा भणियं । कुमार, अदकर कयं तए । कुमारेण भणियं। ताथ, किमिह दक्करं। सुणाउ तात्रो। अत्वि खन्नु केर चत्तारि पुरिमा । ताणं दवे अञ्चन्तमत्थ- १० गिद्धा अवरे विसयलोलुया। पवना एगमद्धाणं। दिट्ठा य हिं कहिंचि उद्दे से मणिरयण सुवलपुला दुवे महानिरी तियसमन्दरिममात्री य दो च्चेव दत्थियात्रो। पावियं ज पावियव्यं ति पट्टा चित्तेण, धाविया अहिमुहं। सुत्रो य हिं "कुमोद महो। भो भो पुरिमा, मा माहमं मा ११ माइसं ति। निरूवेह उवरिहत्तं', निवडर तुम्हाण उवरि महापयो, एयगोयरगयाणं च अलमेडणा चेट्टिएण । नत्री निकवियमणे। दिट्ठो य नारदुरे ममद्धवामियनहङ्गणो रोहो मणेण अलमन्तो जहामनौवे अणिवारणिनो 1 D•चियमिहागुममधेणाशुचिड़िय। २ (EF चंब । . A य, CEF om. ४ A inserts य. CE huve देवयाम् । W CEF om. (A , D adds fa

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