Book Title: Samraicca Kaha Vol 01
Author(s): Hermann Jacobi
Publisher: Asiatic Society

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Page 901
________________ समराइचकहा [संक्षपे 88 मए। पहवा तुम चेव पन्हाण विमलनाणभावो भावोव. थारमंपावणेण कारणपुरिमयाए गुरू, किमेवं पुच्छमि। ता करेहि कारवेशि य. जे एत्य उचियं ति। कुमारेण भणियं। ताय, महापमानो; चियं च वमियं तारण ॥ एत्यन्तरंमि गलियपाया रयण, पल्याएं पासण्यारं . दरारं, वियभित्रो बन्दिमहो, पवारया पञ्चमपवण, उपसिधो पक्षणे, पणट्ठमन्धयारं. समागया दिवसलछौ, विउद्धं नलिणिमण्डं, मिलियाई बलावाया। 'पविट्ठा अमचा। मारियं तेसिं कुमारपरियं, जाणवित्रो निययाहियात्रो। बहुमत्रो अमचाण। भणियं . तेति। देव, जुत्तमेयं, सिन्नर य एवं देवस्म । अचिन्तचिनामणिभूषो कुमारो एत्व मङ्गलं । राणा भणियं । पन्ना, एवमेयं ; ना करेह उचियकरणिज्ज, अलं विलम्बेण। अमञ्चेहिं भणियं ।' जं देवो पाणवेद ।' घोसाविया वरवरिया, पयट्टियं महादाणं. कराविया ।" मवाययणपूया, ममाणिो परजणवत्रो, पूजिया पन्दिमादौ, समापिया सामन्ता, पूजिया गुरवो, ठावियों li yatarat Dadds stulp Fadds tich gartraut I .CEF सिकार। F has only •मविभूर कुमारंमि। * CE , D F add your • DF add प व देवस नियमपुषसंभारेष केप वायसनापि । 0 D F insert मरिचय। CC E F सजायनरेतु पूषा । (DPadd रारा।

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