Book Title: Samraicca Kaha Vol 01
Author(s): Hermann Jacobi
Publisher: Asiatic Society
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समराहचकहा।
[संक्षपे २६९ .
विवषो मे पिययमो, हाथ हि मन्दभारणै। यह वेण उण एवं ववमियं ; कूरी ख 'मो पावो। कौम वा न वावारया, किं वा ममं जौवर पवणयं रिययबन्धणं । नियत्ता रासहकहा। मबहा ईरमो एम मंमारो ति। चिनिजण वासगेशभित्तिमूले सया . दौरखडा, निहलो नहिं जपत्रो। एवमवसोरजण अवन्तो पुरन्दरी, गो पहिमयपएमं । कया 'य गए नहिं पएसे बसहिया, कपिया तस्स बोन्दी, पूएर पादिणां, करेर' बलिविहिं, निहे नेहदौवं, धाषिर सिणेहमोहेण। उचिवममएणं च धागो पुरन्दरो।" न दंसियो तेण विधारो, न सखित्रो नम्बयाए। परनामा कर दियहा। दिट्ठा पुरन्दरेण चलहियासम्ममा । रिन्तियं च कोण। पहो से मूढथा, पो अणुरात्रो। पहवा पणहीयमत्यो इरसो क्षेत्र इत्थियावणो हो । किं ममेदणा। मुहाहारतमायो रत्वियानो ति रिमि- " वयणं । ता करेउ एमा, ज .से परिहायर। पुम्बिं व तौए मा विमथसहमणवन्तम्मा. घरबना दवाखस
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