Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 10
________________ अस्य दर्शनमात्रेण कुष्ठाद्या नाशतां गताः । रोगिणां सकलातकाः ऋद्धियाप्ति: ऋद्धि कांक्षिणाम्।। पुत्रकांक्षावतां चैन मासाहि चेलना प्रिया । पुत्रोत्पत्तिधनोप्पत्ति राज्योः त्पत्तिः शिवस्य च । गौतम स्वामी राजा श्रेणिक से कहते हैं कि हे राजन्, जो भव्य जीव इसके दर्शन करता है करता है उसके कुष्ठ आदि मयानक रोग नाश को प्राप्त हो जाते है, पुत्रार्थियों को पुत्र की प्राप्ति होती है, तथा राज्य-प्राप्ति चाहने वालों को राज्य मिलता है । सभी जीवों को सम्मेदशिखर के दर्शन-वंदन-पूजन आदि से सभी सुखो की प्राप्ति होती है। आचार्यों ने धर्मग्रन्थ में लिखा है चतुर्विधेन संघेन तथा शक्त्यनुसारतः इस पर्वतराज की वंदना और दर्शन के पुण्य से मोक्ष सुख तक मिलता है । इसलिये मोक्ष-सुख का इच्छुक प्राणी मुनि, आर्थिका, पायक, श्राविकाओं यानि चतुर्विध संघ निकाल कर यात्रा करने एवं कराने से अतिशय अक्षय पुण्य संचय कर दर्शन ,वंदन करो । कहा भी सिग्जां नारकी चैव न गति प्राप्तुनुयात् किंचित् । एक बार बन्दै जो कोई, ताहि नरक पशु गति नहि होई ।। ___ इस महान् तीर्थराज की वंदना करने मात्र से नरकगति और तिर्यश्चगति छूट जानी है अर्थात् जीव मर कर फिर नरक का एवं तिर्यश्च गति में जन्म नहीं लेता था उसका बीलिंग का भी छेदन हो जाता है। तीर्थराज सम्मेदशिखर के २० टौकों से २० तीर्थकरों के साथ ८६ अरब ४८८ कोड़ाकोड़ी १४० कोड़ी १०२७ करोड ३८ लाख ५० हजार तीनसौ तेईस मनि कर्मों को नाश कर मोक्ष पधारे । इस कारण इस भूमि का कण पूजनीय एवं वंदनीय हैं। सभी पापो का संहार करने वाला तीर्थराज की बदना महान् पुण्य का कारण है । एक बार इस तीर्थ की वंदना करने से ३३ कोटि २३४ करोड ७४ लाख उपवास का फल मिलता है। गिरिराज का प्रभाव है कि विशाल जंगल में नाना प्रकार के क्रूर जीव हैं किन्तु आज तक किसी भी तीर्थयात्री को किसी प्रकार की कोई बाधा नहीं पहुंचाई । यही तो इसका प्रभाव है। तीर्थराज की वंदना के लिए जैन आचार्यों ने वस्त्रों का विधान बताया हैसफेद वस्त्र पहन कर वंदना करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है । लाल वस्त्र पहन कर।

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