Book Title: Sammedshikhar Mahatmya Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad View full book textPage 9
________________ (१२) दिगम्बर जैन बीस पन्थी कोठी से २ फर्लांग की दूरी पर क्षेत्रपाल महाराज की गुमठी । इनका नाम महाप्रभुत क्षेत्रपाल जो १० लाख व्यन्तरो के अधिपति हैं, इनका सत्कार कर वन्दनार्थ जाने वाले की सुगमता से यात्रा हो जाती है। यह इसका अद्भुत चमत्कार है यहाँ से ढाई मील की दूरी पर गन्धर्व नाला आता है। यात्रीगण विश्राम तथा यात्रा से वापसी मे जलपान किया करते हैं। यहाँ से १ मी० की दूरी पर सीता नाला बहता है। वहाँ पर प्रभूत महाबल क्षेत्रपाल यक्षेन्द्र की दो गुमठियाँ हैं। सीतानाला पर यात्री बन्धुओं के लिए शुद्ध जल से पूजन सामग्री धोने का जल हैं। इस नाले के पार से चौपड़ा १ मील दूर चौपड़ा कुण्ड है जहाँ दिगंबर जैन मन्दिर, वहाँ भगवान् पार्श्वनाथ तथा भगवान् आदिनाथ तथा बाहुबली की मूर्ति स्थापित है। आधा मी० की दूरी पर देवाधिदेव कुन्थुनाथ स्वामी तथा गणधर महाराज की टोंक शुरू होती है। वंदना करते समय यात्री जूते, चप्पल, ऊनी वस्त्र, चमड़े की बनी वस्तुओं का उपयोग न करें । पाप बन्ध का कारण है। जैनाचार्यों ने कहा रोमजं चर्मणं वस्त्रं इतिः परिवर्णयेत् । रोम के, चमड़े के कपड़ों को त्याग कर खाने पीने का त्याग कर वंदना करनी चाहिए । - मधुबन से भगवान् कुन्थुनाथ जी की टौंक तक ६ मील तथा ऊपर समस्त टौकों की वन्दना का घुमाव ६ मील तथा पार्श्वनाथ से नीचे धर्मशाला तथा आने में ६ मील इस प्रकार १८ भील यानि २७ कि०मी० की यात्रा पुण्यभूमि के प्रताप से किसी प्रकार की थकावट प्रतीत नहीं होती। यह अनादिकाल सिद्ध प्रसिद्ध सम्मेदशिखर महान् सिद्धक्षेत्र है । इस गिरीराज से असंख्यात् चौबीसी और अनन्तानन्त मुनिश्वरों ने कर्म नाश कर मोक्ष पद प्राप्त किया । इस क्षेत्र के कण में अनन्त विशुद्ध अनन्त आत्माओं की पवित्रता व्याप्त है, वे अनन्त सिद्ध भगवान् अपने परम औदारिक शुद्ध शरीर की समस्त वर्गणाओं को बिखरा गये। जैसे किसी सुगन्धित वस्तु से सुगन्धित किया गया पात्र उस सुगन्धित वस्तु क्रे पृथक् हो जाने पर भी उस पात्र में सुगन्धि का अंश बराबर मौजूद रहता है, वैसे ही अनन्त केवली भगवन्तों के परम औदारिक शरीर सम्बन्धी पुद्गल वर्गणाओं का अस्तित्व आज भी श्री सम्मेदशिखर को पवित्र कर रहा है। वे वर्गणाएँ आज भी भावों और कर्मों से टकराकर हमको परमात्मा बनने की प्ररेणा देती हैं। इनके रजः कणों में आध्यात्मिकत्ता का दिग्दर्शन होता है। एकान्त शान्त सघन वनस्थली दृढ़ता एवं उत्साह प्रदान करती है। सनसनाती वायु भव्य आत्माओं को पुरुषार्थ का सन्देश देती है ।Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 639