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22. उसी तरह पंचमी एक वचन में क्रियाविशेषण के लिए पुराना रूप मिले तो रखा जाना चाहिए (पदिसो)।
23. पंचमी एक वचन की विभक्ति -म्हा मिले तो रखी जानी चाहिए ।
24. स्त्रीलिंगी शब्दों में तृतीया से सप्तमी तक एक वचन की विभक्तियाँ -य अथवा या (-ई और -आ भी) को मात्र पालि की विभक्तियाँ मानकर उन्हें त्याज्य नहीं समझा जाना चाहिए।
25. सप्तमी एक वचन की विभिन्न ऐतिहासिक विभक्तियाँ -स्सि, -स्सि, -स्मि, -म्हि -या यदि मिले तो उन्हें सुरक्षित रखना चाहिए (स और म की आपसी भ्रान्ति मात्र हस्तप्रतों में ही नहीं परंतु शिलालेखों में भी देखने को मिलती है)।
.. 26. तृ. पु. ए. व. आत्मनेपदी प्रत्यय -ते (-ए) मिले तो उसे -ति, या -इ -ती, -ई में नहीं बदलना चाहिए ।
27. कर्मणि भूत कृदन्तों के रूपों में मिलने वाला-ड प्रत्यय जैसे कि कड, गड, को बदला नहीं जाना चाहिए ।
28. वर्तमान कृदन्त का प्रत्यय-मीन मिले तो रखा जाना चाहिए ।
29. उन उन ऐतिहासिक रूपों को जो प्राचीन भारतीय आर्य भाषा (OIA) के साथ सम्बन्ध रखते हैं (जिनमें कभी कभी ध्वनि-परिवर्तन भी हो गया हो तो) चाहे वे नामिक रूप हो, चाहे क्रियावाची रूप हो या कृदन्त हो उन्हें प्राचीनता की प्रामाणिक सामग्री के रूप में यथावत् रखा जाना चाहिए।