Book Title: Sambodhi 1989 Vol 16
Author(s): Ramesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 286
________________ दोहा-उपहार केवळज्ञान मळरहित (निर्मळ ) २. ज्यां ते अनादि ज्ञान रहे छे ते उरमां सर्व जगतनो संचार थाय हो, कई एनाथी पर रहेतुं नथी. ८९ आत्मा आत्मामां स्थित थाय ले. कोई( कर्म-मळ )नो लेप एने लागतो नथी. जे सघळा महा दोषो छे तेनो उच्छेद थई जाय छे. ९० हे जोगी! जोग लईने . जो जंजाळमां पडीश नहीं तो देहकुटि नाश पामशे, तुं तेमनो तेम रहीश. अरे मनरूपी करभ ! इन्द्रिय-विषयोना सुखमां आसक्ति न कर. जेमां निरंतर सुख नथी एवा ते विषयोने क्षणमां छोडी दे. न राजी था, न रीस कर, न क्रोध कर. क्रोधथी धर्म नाश पामे छे. धर्म नष्ट थवाथी नरकमां गति थाय छे. अने एम मनुष्य-जन्म एळे जाय छे. ९३ साडा त्रण हाथy देवळ छे. तेमां वाळनो य प्रवेश ( शक्य ) नथी. शांत निरंजन (देव) तेमां वसे छे. निर्मळ थईने (तेने ) शोधी काढ. ९४ मनने तरत पार्छ वाळीने आत्माने अन्य तत्त्वोमां मळवा न दे.-जेनी आटलीय शक्ति न होय ते मूर्ख योगी शुं करवानो हतो ? ९५ हे जोगी! ते जोगी छे जे निर्मळ योगमा मननो संयोग करावे. पण जे इन्द्रियोने वश थाय छे ते तो आ लोकमां पशु ज ले. ९६ हे मूढ ! जेना( उच्चारण )थी ताळg सुकाई जाय एवं घणु भण्यो. पण जेनाथी शिवपुरि जई शकाय तेवो एक ज अक्षर छे - ते भण. ९७ शास्त्रोनो पार नथी, समय थोडो छे अने आपणे दुर्बुद्धि छीए. माटे ते ज शीखवु जोईए जे जन्ममरणनो क्षय करे. निर्लक्षण, स्त्रीबाह्य अने अकुलीन एवो ( प्रियतम ) मारा मनमा स्थिर थयो छे. तेने माटे....... (?) आणी छे. जेथी....... (?) हु सगुण छं अने प्रियतम के निर्गुण, निर्लक्षण, निःसंग. एक ज शरीरम वसनारा अमारा बेनुं अंगथी अंग न मळयु । १००

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