Book Title: Sambodhi 1989 Vol 16
Author(s): Ramesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
Publisher: L D Indology Ahmedabad

Previous | Next

Page 298
________________ दोहा-उपहार आहार काया टकावी राखवा माटे छे, काया ज्ञान माटे प्रयत्न करे छे, ज्ञान कर्मनो विनाश करे छे, कर्मनाशथी परम-पद मळे छे. २१८ काळ, पवन, रवि अने शशि – चारेनो एक साथे वास छे. हुं तने पूछु छु, जोगी ! पहेला कोनो नाश ? २१९ शशि पोषे छे, रवि प्रजाळे छे, पवन हिलोळे चडावे छे. सत्त्व-रजस्तमसने ओगाळीने काळ कर्मने गळी जाय छे. २२० जे मुख अने नासिका वच्चे प्राणोनो संचार करावे ले ते नित्य आकाशमा विहरे छे. ते जीव नित्य तेनाथी जीवे छे. २२१ आपत्तिथी बेभान बनी गयेल ( माणस ) खोबा पाणीथी जीवी जाय छे. पण निर्जीव ( माणस ) हजार घडा पाणीने य शुं करे ! २२२

Loading...

Page Navigation
1 ... 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309