Book Title: Sambodhi 1989 Vol 16
Author(s): Ramesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 294
________________ दोहा-उपहार ___ भीठे जेम पाणीमां ओगळी जाय छे तेम चित्त जो ( आत्मामां ) गळी जाय तो (एवा ) समरस बनेला जीवने समाधिनु शु काम ? . १७६ जो तु एक ज पदने पामीश, हुं ( तारा माटे) अपूर्व कौतुक करीश. जेम आंगळी देखातां पग अने मस्तक देखातां सर्वाग शरीरनी धारणा थई शके छे. (?) १७७ तीर्थे तीर्थे भटकनाराने शरीरसंताप ज मळे .. आत्माथी आत्मानु ध्यान करीने निर्वाणमां डग दे. १७८ हे जोगी! जेने जोवा माटे तुं तीर्थे तीर्थे भमे छे ते शिव तो तारी साथे ज चाले छे. तो य तुं तेने पामी शक्यो नहीं ! १७९ हे मूढ ! लोकोए रचेलां देवळो तुं जुए छे पण पोताना देह( रूपी देवळ)ने तो जोतो नथी के ज्यां शांत शिव रहेल छे ! १८० डाबी बाजु अने जमणी बाजु गाम वसाव्यां, मध्यमां शून्य. त्यां गामडु जे जाणे ते बीजें गाम वसावे छे. १८१ हे देव ! मने तो ( सवार ), बपोर अने सांज तारी चिंता छे. (ज्यारे) तुं तो परम निरामय स्थानमा जईने सूई रहीश. १८२ बुद्धि ज्यां तड दईने तूटी जाय ने मन ज्यां आथमी जाय - हे स्वामि ! एवा देवनो उपदेश करो. अन्य देवोथी शु? सकलीकरण जाण्यु नहीं, पाणी ने पर्णनो भेद न जाण्यो, आत्माने परमात्मा साथे मेळव्यो नहीं ( के आत्म-अनात्मने छूटा पाड्यां नहीं) ने पथ्थरने देव तरीके पूजे छे ।। आत्माने परमात्मामां मेळव्यो नहीं, भवभ्रमण भाग्युं नहीं. फोतरां खांडतां काळ गयो, तांदुल हाथ लाग्या नहीं ! १८५

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