Book Title: Sambodhi 1989 Vol 16
Author(s): Ramesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 295
________________ दोहा-उपहार देहरूपी देवळमां शिव वसे ले ( अने) तुं (बाह्य ) मंदिरोमां शोधे ले. मारा मनमा हसवं आवे छे के तने मळेलु जले अने ( तेनी) तुं भीख मांगे छे! १८६ 'तुं वन, देवालय अने तीथों मां भमे ले, आकाशने य निहाळमो ( फरे ले ). अहो ! वरुओ छूटा पड्या छे ( अने ) पशुओ भमी रया छे ! ( ? ) १८७ बन्ने रस्ता छोडीने लक्ष्य वगरनो वच्चे जाय छे ! जो ते लक्ष्य मेळवे (तो पण ) बेमाथी एके ( मार्गर्नु ) कंई फळ तेने मळशे नहीं. १८८ हे योगी! योगनी गति विषम छे. मनने अटकावी शकातुं नथी. इन्द्रियविषयनां जे सुखो छे तेमां फरी फरी ( मन ) पाछु जाय ले. १८९ बांधेल त्रण लोकमां फरे छे, मुक्त करेल एक डग पण चालतो नथी! हे जोगी! जो, ( मनरूपी ) करम विपरीत कार्य करे हे ने ?! १९० संसारमा भमतां न सत्य के न तत्त्व (जीवने) देखाय छे. जीव (पोतानी पांच इन्द्रियोनी) फोज साथे एक अटवीथी बीजी अटवीमा भमतो उज्जडने जे वसतीवाळा करे ते अने जे वसतीवाळाने उज्जड ! - ते जोगीनी बलिहारी, जेने नथी पाप के पुण्य. १९२ जे पहेलांनां कर्मनो नाश करे से, नवा कर्मने प्रवेशवा देतो नथी, प्रतिदिन जिनेश्वर देवनुं ध्यान करे छे ते परमात्मा बने ळे. १९३ बीजो जे विषय सेवे के अने घणां पाप करे छे ते कर्मना कारणे नरकनो महेमान बने छे. जेम चामडाना टुकडाथी कूतराने संताप भोगववो पडे ले तेम सडेला पदार्थो अने क्षार-मूत्र-गंधथी भरेला छिद्र द्वारा लोको संताप पामे छे. १९५

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