Book Title: Sambodhi 1989 Vol 16
Author(s): Ramesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 290
________________ दोहा-उपहार अरे जीव ! विषय-कषाय छोडीने जिनवरमा मन स्थिर कर, तो तुं दुःखने विदाय करी सिद्धिरूपी महानगरीमा प्रवेश करीश. १३४ हे मुंडितोना य मुंडित ! तें माथु मूडयं पण चित्त न मूंडयु. जेणे चित्तनुं मुंडन कर्यु' तेणे संसारचं खंडन कयु'. १३५ जे सर्वांग व्याप्त छे तेने काजे आत्मा शुं करे ? जे परमार्थनी इच्छा राखे छे तेने पुण्य-विसर्जननुं शुं काम छे ? १३६ जे त्रणे लोकमां प्रधान छे ते तो गमनागमनथी रहित छे. तेथी जेणे पथ्थरनो मोटेा देव बनावी बेसार्यो छे ते ज्ञानी ( गणातो) होवा छतां अज्ञान छे. १३७ __पुण्यथी वैभव मळे छे, वैभवथी मद थाय छे, मदथी मतिव्यामोह थाय छे, मतिमोहथी नरकनी प्राप्ति. तेवू पुण्य अमने न होजो. १३८ कोनुं ध्यान करूं ? कोने पूजु ? स्पृश्य-अस्पृश्य कहीने कोने छेतलं ? सखि ! कलह कोनी साथे करूं ? ज्यां ज्यां जोउं त्यां त्यां पोतानी जात ( ज नजरे पडे ) छे. जो मनमां क्रोध करीने कलह कराय तो निरंजननो अभिषेक करवो. ( तो जणाशे के) ज्या ज्या जोयुं त्यां कोई नथी. हुं कोईनो नथी, कोई मारुं नथी. १४० हे जिनवर ! ज्यां सुधी देहनी अंदर ज रहेनारने न जाण्यो त्यां सुधी तने नम्यो. ज्यारे देहमा रहेलाने जाण्यो त्यार पछी कोण कोने नमे ! १४१ शुभ-अशुभ कर्म करवा छतां त्यां सुधी मनमां संकल्प-विकल्प रहे छे, ज्यां सुधी हृदयमां आत्म-स्वरूपनी सिद्धिनी झांखी थती नथी. १४२ 'घेलो' 'घेलो' एम तने घेला लोक कहे छे. एनाथी गभराईश मा. मोहने उखाडीने सिद्धि-महानगरीमा प्रवेश कर. १४३

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