Book Title: Sambodhi 1989 Vol 16
Author(s): Ramesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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दोहा - उपहार
आत्मा त्यां सुधी पापनुं परिणाम अनुभवे छे, त्यां सुधी कर्म करे छे, ज्यां सुधी निर्मळ थईने परम निरंजनने जाणतो नथी.
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२६
वळी, दर्शन-ज्ञानमय आत्मा निरंजन परमात्म देव े. हे मूढ ! एम समजी ले के आत्मा ज साचो मोक्षमार्ग छे.
७९
(लोको ) त्यां सुधी कुतीर्थो मां परिभ्रमण करे छे, त्यां सुधी धूर्तता करे छे, ज्यां सुधी गुरुकृपाथी देहमां रहेला देवने ओळखता नथी.
८०
लोभमा मोहित थयेलो तु त्यां सुधी विषयोमां सुख माने छे, ज्यां सुधी गुरुकृपाथी अविचळ बोध मेळव्यो नथी.
८१
जेनाथी विशेष बोध ( आत्मज्ञान ) ऊपजे नहीं एवा त्रणे लोकने प्रगट करनारा ज्ञानथी पण (जीव ) बहिर्ज्ञानी ज रहे थे. परिणामे तेवुं ज्ञान पण अशुभ ज छे.
८२
तेनी दृढ मर्यादा अकी लेवी जोइए, जेवुं भणाववामां आवे तेवुं ज कर जोईए. अने वळी आमतेम गमनागमन नहीं कर जोईए. तेनां कर्मों आपोआप नाश पामशे.
८३
तत्त्वनुं व्याख्यान करनार डाह्याए ( पोताना ) आत्मामा चित्त दीधुं नहीं. जाणे दाणा वगरनां घणां फोतरां संघर्यो ।
८४
पंडितोना पंडित । दाणा छोडीने तें फोतरां ज खांड्यां ! ग्रंथांना अर्थमां संतोष पाम्यो. तुं मूढ छे के तु परमार्थ जाणतो नथी.
८५
ग्रंथज्ञानमा जे गर्व करे से ते कारण ( परमार्थ ) जाणता नथी. जेम हाथां वांस धारण करेल चंडाळ केवळ ( समज्या विना ) हाथ धुणावे छे. ८६
हें मूर्ख | बहु भण्याथी शुं ? ज्ञानरूपी अग्नि पेटावतां शीख, के जे सळगतां पुण्य अने पाप बन्नेने क्षणमां ज बाळी दे छे.
८७
सिद्धत्व माटे सहु कोई वलखां मारे छे, पण सिद्धत्व चित्तनी निर्मळ - ताथी पानी शकाय .
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