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दोहा-उपहार
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शिव विना शक्ति कार्य करवा समर्थ नथी, शिव शक्ति विना. बन्नेने जाण्याथी मोहलीन समग्र जगत जाणी लेवाय छे.
५५ ज्यां सुधी ते जुदो ज ज्ञानमय भाव तारा लक्षमां न आवे त्यां सुधी तारुं अज्ञानमय, हतभागी चित्त बापडु संकल्प-विकल्प करतु रहे छे. ५६
नित्य, निरामय, ज्ञानमय, परमानंदस्वभाव परमात्माने जेणे जाणी लीधो के तेने बीजो कोई भाव रहेतो नथी.
अमे एक जिनदेवने जाण्या, अनंत देवोने जाणी लीधा. त्यारे ते मोहमां मोहित थयेलो दूर दूर भटकतो रहे छे.
जेना हृदयमां केवळज्ञानमय आत्मा वसे छे ते त्रणे लोकमां मुक्त हे. तेने पाप लागतु नथी.
बंधनना कारणरूप कोई पण वस्तुने जे मुनि विचारतो नथी, बोलतो नथी के आचरतो नथी ते केवळज्ञानथी तेजस्वी शरीरवाळेा परमात्मा देव छे. ६०
अतरतम मन मेलु होय तो बहारना तपथी शुं ? चित्तमां कोई निरंजननी धारणा कर के जेथी मेलथी मुक्त थई शके.
विषय-कषायोमा जतां मनने निरंजनमां स्थिर करवु एटलं ज मुक्तिनु कारण छे, नहीं के बीजां कोई तंत्र-मंत्र.
६२ हे जीव ! जो खातो-पीतो (भोगो भोगवतो ) तु शाश्वत मुक्ति मेळवे एवं होय तो ऋषभ भगवाने सकळ इन्द्रिय-सुखोनो त्याग शा माटे कों हतो?
हे मूढ ! आ देहरूपी महिला तने त्यां सुधी सतावे ले ज्यां सुधी ताएं चित्त निरंजन परम तत्त्व साथे एकाकार थयु नथी. ६४
सर्व विकल्पोने हणनारुं ज्ञान जेना मनमां स्फुरतुं नथी, सघळी वस्तुने धर्म कहेतो ते शाश्वत सुख केवी रीते मेळवे ?
जेना सकळ चिंताओथी मुक्त चित्तमा परमात्मा वसे ले, ते आठे कर्म हणीने परम गति पामे ले.
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