Book Title: Sambodhi 1989 Vol 16
Author(s): Ramesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 282
________________ दोहा-उपहार ४४ पांचे (इन्द्रियरूपी) बळदने तु अटकावी शक्यो नहीं तेथी ( मुक्तिरूपी) नंदनवनमां तुं जई शक्यो नथी. ते न आत्माने जाण्यो , न परने - एम ज मुनि बनी बेठो छे. हे सखि ! (तारा) प्रियतमने बहारना पांचनो नेह लाग्यो छे. जे खल जईने ‘पर 'ने मळयो होय ते पाछो आवे तेम देखातुं नथी. ४५ मन ज्यारे निश्चित थईने चिंतन करे छे त्यारे बोध पामे छे. अने ते निश्चित त्यारे थाय के ज्यारे आत्मतत्त्वने अनात्मतत्त्वथी जुदुं पाडे छे. ४६ जे आगळ जोता रस्ता पर चाल्या छे तेमना पगमां कचडाई कांटा भोंकाय तो भले भोंकाय. तेमां तेमनो दोष नथी.. ४७ (मनने ) मूकी दे, मोकळं मूकी दे, ज्यां फावे त्यां जवा दे, सिद्धि महानगरीमा पेसवा दे. हर्ष के विषाद न कर. मन परमेश्वरमां मळी गयुं छे, परमेश्वर मनमां. बन्ने समरस थई रह्यां २. पूजा कोनी करूं? ४९ परमेश्वर देवनी पूजा क्यांक ( अन्यत्र ) जईने केम कराय हे ? जे शिवपरमात्मा सर्वागमा वसेल ते केम विसाराय ? ५० ...... (?) जे पर छे ते पर जछे. पर तत्त्व आत्मा न होय. हु दामु छु , ते बची जाय छे (ते जोवा छतां) पण पार्छ वाळीने जोतो नथी. हे मूढ ! सघर्छ विनश्वर छे, अनश्वर कई नथी. जीव गयो, झुपडी (देह) न गई - ए दाखलो जो. देहमंदिरमा शक्ति साथे जे देव वसे छे, तेमां कोण शक्ति अने कोण शिव ते भेद तु जलदी शोधी काढ. जे जीण थतो नथी, मरतो नथी, जन्मतो नथी, जे परमात्म अनंत, त्रिभुवनस्वामी,' ज्ञानमय छे ते निश्चय शिव छे. ५४ ५३

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