Book Title: Sambodhi 1989 Vol 16
Author(s): Ramesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
Publisher: L D Indology Ahmedabad

Previous | Next

Page 284
________________ दोहा-उपहार 24 हे मूढ ! गुणनिलय आत्माने मूकीने बीजानुं ध्यान जे धरे ले तेवा अज्ञानभरेलाने केवळज्ञान क्याथी थाय ? ६७ आत्मा ज मात्र दर्शन अने ज्ञानरूप छे, बीजं सघर्छ तो व्यवहार. हे जोगी ! जे त्रणे लोकना साररूप छे एवा ते एकनु ज ध्यान धरवू जोईए. ६८ 3आत्मा ज दर्शन-ज्ञानमय छे, बीजु बधुं तो प्रपंच. ए जाणीने हे योगीओ! मायाजाळ छोडो. जगतिलक (जगभूषण) आत्माने मूकीने जे परद्रव्य( पुद्गल )मां रमण करे छे ते अज्ञ (मिथ्याज्ञानी ) छे. मिथ्यादृष्टिने माथे शुं शींगडां होय छे ? ७० ___ जगतिलक आत्माने मूकीने हे मूढ ! अन्यनुं ध्यान न धर. जेणे मरकतमणिने जाण्यो छे तेने काचनी कई गणतरी ? हे मूर्ख ! शुभ परिणाम( शुभ भाव )थी धर्म अने अशुभथी अधर्म थाय. के. ए बन्नेनो त्याग करनार जीव जन्म (भव-भ्रमण ) पामतो नथी. ७२ १. हे जोगी! कर्म पोतानी जाते ज एकठां थाय ले अने पोतानी जाते ज. छूटां. पडे छे, एमां शंका नथी. चंचळ स्वभावना मुसाफरोनां ते वळी गाम वसतां हशे ? ७३ जो तुं दुःखथी डरतो होय, तो बीजा जीवने माटे (पण ) जुदं न विचार. तलना फोतरा जेवडो कांटो य वेदना जरूर करे छे. ७४ ___ आत्मा द्वारा आलोचना करातां पाप क्षणमात्रमा नाश पामे हे. सूर्य एकलो क्षणमा तिमिरसमूहनो नाश करे छे. ७५ .. हे जोगी ! जेना हृदयमा एक ज परम देव वसे छे ते जन्ममरणरहित बनी. परमलोकने पामे छे. ७६ ' जे पहेलांनां कर्माने नष्ट करे छे, नवाने प्रवेशवा देतो नथी, जे परम निरंजनने नमे छे, ते परमात्मा बने छे.

Loading...

Page Navigation
1 ... 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309