Book Title: Sambodhi 1989 Vol 16
Author(s): Ramesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 278
________________ दोहा - उपहार ( दोहा - पाहुडनुं गुजराती भाषांतर) आत्मा अने परनी परंपरानो भेद जे दर्शावे छे ते गुरु सूर्य छे, गुरु चंद्र छे, गुरु दीपक छे, गुरु देव छे. १ पोताने आधीन जे सुख के तेनाथी ज संतोष कर हे मूर्ख ! पारकाना सुखनी इच्छा करवाथी हृदयनी तरस छीपती नथी. २ जे सुख विषय - विमुखने आत्मध्यानमां मळे हे ते सुख करोड देवीओ साथै क्रीडा करता इन्द्रने पण मळतुं नथी. ३ विषयसुख भोगवता छतां जे हृदयमां ( तेनो भाव ) धारण करता नथी ते तरत शाश्वत सुख मेळवे छे – एम जिनवरो कहे के, ४ विषयसुख न भोगवता छतां जे हृदयमां ( तेनो ) भाव धारण करे छे ते नर बापडां शालिसिक्थनी जेम नरकमां पड़े छे. ५ आपत्तिमां आडोअवळो विलाप करे छे, एनाथी तो दुनिया ज राजी थाय छे. मन शुद्ध अने स्थिर थाय त्यारे परमलोकनी प्राप्ति थाय छे. ६ जंजाळमां पडेल सकळ जगत अज्ञानवश कर्मों करे जाय हे, पण मुक्तिना कारणरूप (शुद्ध) आत्मानुं एक क्षण पण चिंतन करतु नथी. ७ ज्यां सुधी ज्ञान मेळवतो नथी त्यां सुधी पुत्रपत्नी आदिमां मोह पामेल आत्मा दुःखो सहन करतो लाख योनिमां भटके ले. ८ पोताना घर, परिवार, तन वगेरे ईष्ट न समज. ए बधां तो कर्मने आधीन अने बनावटी (क्षणिक) ले - एम आगमोमां योगीओओ कह्युं छे. ९ मोहने वश थई तें जे दुःख छे तेने सुख अने जे सुख छे तेने दुःख गण्युं तेथी ज तुं मुक्ति पाम्यो नहीं. १०

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