Book Title: Sambodhi 1989 Vol 16
Author(s): Ramesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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दोहा-पाहुड
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तित्थई तित्थ भमंतयह किं णेहा(?) फल एव । बाहिरु सुद्धउ पाणियह अभितरु किम हूव ॥१६२ तित्थई तित्थ भभेहि वढ धोयउ चम्मु जलेण । एहु मणु किम धोएसि तुहं मइलउ पावमलेण ॥१६३ जोइय हियडइ जासु ण वि इक्कु ण(?) णिवसइ देउ । जम्मणमरणविवज्जियउ किम पावइ परलोउ ॥१६४ एक्कु सु वेयइ अण्णु ण वेयइ । तासु चरिउ णउ जाणहिं देव इ॥ जो अणुहवइ सो जि परियाणइ । पुच्छंतहं समित्ति को आणइ ॥१६५ जं लिहिउ ण पुच्छिउ कह व जाइ । कहियउ कासु वि णउ चित्ति ठाइ ॥ अह गुरुउवएसे चित्ति ठाइ । तं तेम धरतिहिं कहिं मि ठाइ ॥१६६ कडूढइ सरिजलु जलहि विपिल्लिउ । जाणु पवाणु पवणपडिपिल्लिउ ॥ बोहु विबोहुतेम संघट्टइ । अवर हि उत्तउ ता णु पयट्टइ ॥१६७ अंबरि विविहु सद्दु जो सुम्मइ । तहिं पइसरहुँ ण वुच्चइ दुम्मइ ॥ मणु पंचहिं सिहु अत्थवण जाइ । मूढा(?वढ) परमतत्तु फुड तहिं जि ठाइ ॥१६८ अखइ णिरामइ परमगइ अज्ज वि लउ ण लहंति । भग्गी मणहं ण मंतडी तिम दिवहडा गणंति ॥१६९ सहजअवत्थहिं करहुलउ जोइय जंतउ वारि । अखइ णिरामइ पेसियउ सई होसइ संहारि ॥१७० अखइ णिरामइ परमगइ मणु घल्लेप्पिणु मिल्लि । तुट्टेसइ मा भंति करि आवागमणहं वेल्लि ॥१७१
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