Book Title: Sambodhi 1989 Vol 16
Author(s): Ramesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 275
________________ रामसिंह-मुणि-धिरइय विसया चिति म जीव तुहुँ विसय ण भल्ला होति । : सेवताहं वि महुर वढ पच्छइ दुक्खई दिति ॥२०० विसयकसायहं रंजियउ अप्पहिं चित्तु ण देइ । बंधिवि दुक्कियकम्मडा चिरु संसारु भमेइ ॥२०१ इंदियविसय चएवि वढ करि मोहहं परिचाउ । र अणुदिणु झावहि परमपउ तो एहउ ववसाउ ॥२०२ णिज्जियसासो णिफंदलोयणो मुक्कसयलवावारो । एयाइ अवत्थ गओ सो जोयउ णत्थि संदेहो ॥२०३ तुट्टे मणवावारे भग्गे तह रायरोससब्भावे । ॐ परमप्पयम्मि अप्पे परिहिए होइ णिव्वाणं ॥२०४ विसया सेवहि जीव तुहं छंडिवि अप्पसहाउ । अण्णइ दुग्गइ जाइसिहि तं एहउ ववसाउ ॥२०५ मंतु ण तंतु ण धेउ ण धारणु । ण वि उच्छासह किज्जइ कारणु ॥ एमइ परमसुक्खु मुणि सुव्वइ । एही गलगल कासु ण रुच्चइ ॥२०६ है.. उववास विसेस करिवि बहु एहु वि संवरु होइ । पुच्छइ किं बहु वित्थरिण मा पुच्छिज्जइ कोइ ॥२०७ 37. तउ करि दहविहु धम्मु करि जिणभासिउ सुपसिध्दु । कम्महं णिज्जर एह जिय फुडु अक्खिउ मई तुज्झु ॥२०८ 2. दहविहु जिणवरभासियउ धम्मु अहिंसासारु । . अहो जिय भावहि एक्कमणु जिम तोडहि संसारु ॥२०९ 32. भवि भवि दंसणु मलरहिउ भवि भवि करउं समाहि । . भवि भवि रिसि गुरु होइ महु णिहयमणुब्भववाहि ॥२१० :: अणुपेहा बारह वि जिय भाविवि एक्कमणेण । रामसीह मुणि इम भणइ सिवपुरि पावहि जेण ॥२११ [प्रक्षिप्त-दोहा] सुण्णं ण होइ सुण्णं दीसइ सुण्णं च तिहवणे सुण्णं । - अवहरइ पावपुण्णं सुण्णसहावेण गओ अप्पा ॥२१२

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