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कवि मावा - मावजी रचित
वैष्णवभक्तप्रबंधचोपाई
सम्पादक- पं० अमृतलाल मोहनलाल भोजक
ऋण पानामां लखायेली आ लघुकृतिनी प्रति परम पूज्य आचार्यवर्य श्री विजय आँकारसूरिजी महाराज साहेबना संग्रहनी छे । प्रत्येक पृष्ठनी प्रत्येक पृष्ठिमा ११ पंक्तिओ छे । त्रीजा पत्रनी प्रथम पृष्ठिनी दसमी पंक्तिमा आ कृति पूर्ण थाय छे, आथी तेनी बीजी पृष्ठि कोरी छे । आनी लंबाई - पोळाई १० ६x४.४ इंच प्रमाण छे । अंतमां लेखनसंवत नथी लख्यो छतां आकार-प्रकारथी अने लिपिना मरोडथी अनुमान थई शके छे के आ प्रति विक्रमना १७ मा शतका पूर्वार्धमा लखायेली होवी जोईए । गोरा नामना ऋषि माटे आ प्रति पाटणमां लखाई छे ।
आ प्रतिनो उपयोग करवा देवा बदल हुं उक्त आचार्य महाराजजी प्रत्ये विनम्र ऋणभाव व्यक्त करुं हुं ।
नाम तथा कर्ता - प्रतिना अंतमां "विष्णभगतं समाप्तं” लखेलु छे, आथी आ प्रतिनो लेखक आ रचनाने " वैष्णवभक्त" ना नामे ओळखावे छे । आम छतां ५० मी कडीमां आवेला " प्रबंध रचिउ परउपगारि" आ निर्देशथी अने समग्र रचना चोपाई छेदमां होवाथी में आ रचनानु नाम " वैष्णवभक्तप्रबंधचोपाई" कल्प्युं छे ।
विक्रम संवत १५८७ना आसो सुद १३ ना दिवसे भावनगर पासे आवेला तळाजा
वैष्णव मावा नामना कविए आनी रचना करी छे । वैष्णव मावानी कोई पण रचना में जाणी नथी । आथी आ कवि अने तेनी रचनानी प्राचीन गुजराती साहित्यमां सौ प्रथम पूर्ति थाय छे । कोई पण कवि के कलाकार जवल्ले ज पोतानु एक मात्र सर्जन करीने अटके छे, आ हकीकतथी तथा आनी साहाजिक रचनाने लक्षमां लईने कही शकाय के वैष्णव मावाए आन्यान्य रचनाओ पण करेली हात्री जोईए ।
रचनानो संक्षिप्त परिचय - मनना मेला, मायावी, विश्वासघाती, बहारथी धर्मी व्रत नियम पाळनार अने अंतरथी विलासी परदारगामी, अभक्ष्यभोजी, मदिरापान करनार, जीवहिंसा करनार - निर्दय तथा अहंकारी जनो श्रीरामजीने नथी गमता । आ मतलबनो निर्देश प्रारंभनी १५ कडीओमां छे ।
१६मी थी ४८मी कडी सुधीमां श्रीरामने गमे छे तेवा साचा वैष्णवनी ओळख आपी छे । अहीं विस्तारथी जणावायेलां साचा वैष्णवनां लक्षणो पैकीनां केटलांक लक्षणो सूचक छे, जेम के जीवदया पाळनार, अणगळ पाणी नहीं पीनार, रात्रीभोजननो त्यागी, अष्टकर्मनु दलन करनार । आथी सहज भावे अनुमान थाय छे के प्रस्तुत मावा = मावजी कविने कोई क जैन विद्वाननो ठीक-ठीक धर्मसंबंध होवा जोईए, अथवा तो जैन गृहस्थना पायाना आचारविचार साथे साम्य घराबे एवा वैष्णव जनना आचार-विचारनो अहीं कविए निर्देश कर्यो छे ।
४९मी कडीमां रचनासंवत जणावीने, शास्त्रनु मथन करीने भवसागर पार करवा माटे आ रचना करी छे एम जणाव्यु छे ।