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प्रेम सुमन जैन की पड़ आदि में देखा जा सकता है। राजस्थान की चित्रकला के सम्बन्ध में जानने के लिए कुब० का यह वर्णन सबसे प्रचीन हैं । .. : मूर्तिकला के अन्तर्गत शिव, विष्णु, गणेश, लक्ष्मी, सरस्वती आदि की अनेक मूर्तियां राजस्थान में उपलब्ध हैं । उनकी अर्चना एवं स्वरूप आदि का वर्णन कुवलयमाला में हुआ है। कई द्रव्यों के मिश्रण से बनायी जाने वाली जिन-प्रतिमाओं का उल्लेख कुव० में है, वह सर्वधातु से निर्मित प्रतिमाओं के निर्माण का संकेत है । पिंडरवारा के जैन मन्दिर में ७८४ ई. की निर्मित सर्वधातु की प्रतिमा उपलब्ध भी है । उद्योतन ने ऋषभदेव की प्रतिमा को मुक्ताशैल द्वारा निर्मित कहा है । यह मुक्ताशैल संभवतः राजस्थान का सफेद संगमरमर है, जिसकी मूर्तियां बनती हैं । कुवलयमाला में यक्ष के सिर पर जिन-प्रतिमा की स्थापना की बात भी कही गयी है । भारतीय मूर्तिशिल्प में इस प्रकार की अनेक यक्ष-प्रतिमाएं उपलब्ध हैं । राजस्थान में चित्तौड़ के पास बांसी नामक स्थान से जैन कुबेर की मूर्ति प्राप्त हुई है, जिसके मुकुट पर जिन-प्रतिमा स्थापित है। इस तरह कुव० में वर्णित कला के अनेक सन्दर्भ राजस्थान की कला से सम्बन्ध रखते हैं ।
कुवलयमाला में वर्णित राजस्थान के जन-जीवन के ये कुछ उदाहरण मात्र हैं । सूक्ष्मता से अध्ययन करने पर और भी कई तथ्य प्राप्त हो सकते हैं । कुवलयमाला इस बात का उदाहरण है कि राजस्थान के इतिह् स और संस्कृति के अध्ययन में साहित्यिक साक्ष्य किस प्रकार उपभागी हो सकते हैं । इस प्रकार के ग्रन्थों का अध्ययन अनुसंधान के क्षेत्र में कितनी नयी दिशाएं प्रस्तुत करता है, यह भी इससे स्पष्ट है । १- द्रष्टव्य, लेखक का ग्रन्थ, पृ० ३०० २. अण्णोण-वण्ण-घडिए णिय-वण्ण-पमाण-माण-णिम्माए । कुव०, ९५८ ३- राजस्थान श्रु द एजेज पृ० ६७ ४- मउडम्मि पडिमा मुत्तासेल-विणिम्मविया । कुव०, ११५.४, ११९.३ ५- द्रष्टव्य, कुवलयमाला, द्वितीय भाग में, डा. वासुदेव शरण अग्रवाल का लेख पृ० १२३ ६- कुव०, १२०.१५-१६ ७- रिसर्चर, १, पृ० १८