Book Title: Sambodhi 1977 Vol 06
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 359
________________ संघपति खीमचंद रास अणुपमसरि जलि कलस भरे मा० पहुतउ पउलि प्रवेसि ।। नयण भरिय आणंद जले मा० तिलख तोरणह निवेसि ॥३॥ पाउडिआलइ आरूहवि मा० जगपति जिणु निरखेइ । खीमचंदु संघाहिव ए मा० दंड-प्रणाम करेइ ॥४॥ चंदनि मृगमदि कुंकुमिहिं मा० पूजइ जिणवरु भाइ । कुसुममाळ किसणागरिहिं मा० सोह हुअइ जिण काइ ।।५।। राइणि रुखु वधारि करे मा० मनि धरि अति उच्छाहु । करवि अवारिय देइ धज मा० मुकलावी जिणनाहु ॥६॥ मुकलावण मागण जणह मा० परिसए सोवनधार । वाई चंपेसरु अवयरिउ रा. सेवक देह सिंगार ॥७॥ ललतासर-तडि आवियउ मा० दवडिउ दूसमकालु । वलही वलि आवासियउ मा. संधाहिवु सु विसालु ॥८॥ धंधूकइ जिण वीरु थुणि मा० झझूवाड़इ । ......................................... ............॥९॥ नागावाड़उ निरवियउ मा० निज कित्तिहिं धवलंतु । छडिहि पयाणिहि संघपते मा० भट्टनयरि संपतु ॥१०॥ सु० मोतीयच उक पूरावियउ ए मा० घरि घरि वंदुरवाल पूनकलस हुउ सामुहउ मा० गीय झुणि वर माल ॥११॥ ढालइ चमर चतुर अवल मा० बाजइ वादित्र रंगि । पहिराविउ संघाहिवइ मा० राइ हमीरि सुचंगि ॥१२॥ संधपूज वित्थरि कर ए मा० हरसिउ श्रावय लोउ । जय जयकार समुच्छलि उ मा० लोहा-कुलिहु उजोउ ॥१३॥ सु० जा थिरु महियलि मेरु गिरे मा० गयणिहिं दिणयरु जाम खीमचंदु परियण सहिउ मा. थिरु हुउ महियलि ताम ॥१४।। सासणदेवि सानिधु करए मा० रउ दुरि ३ वडि माई। खीमागरु थिरुधर जयउ मा० सउ नंदणस्यउं भाई ॥१५॥ ॥ इति श्री संघपति खीमचंद रासः ॥छः।।

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