Book Title: Sambodhi 1977 Vol 06
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

Previous | Next

Page 335
________________ कुवलयमाला में प्रतिपादित राजस्थान ३७ सूर्य उपासना उस समय बहुत प्रचलित थी, जिसका संकेत उद्योतन ने दिया हैं। कुव० में मूलस्थान - भट्टारक का भो उल्लेख है । मुल्तान की यह सूर्यप्रतिमा कोढ़ निवारण के लिए प्रसिद्ध थी । संभव है, राजस्थान के लोग इसकी उपासना करते जाते रहे हों कष्ट निवारण के लिए सूर्य के पुत्र रेवन्तक का उल्लेख भी कुव० में है ।" राजस्थान के चेदि अभिलेख में रेवनाक के मंदिर बनवाये जाने का उल्लेख है । तथा ओसिया के सूर्य मंदेर में रेवन्तक की एक प्रतिमा भी उपलब्ध है । कुवलयमाला में विभिन्न धार्मिकों के प्रसंग में पूर्तधर्म का भी उल्लेख है । उद्योतन ने कहा है कि कुएं, तालाब खुदवाना वापिकाओं का बंधवाना तथा प्याऊ खोलना ही पूर्तधार्मिकों का परम धर्म है । अन्य प्रसंग में मी धन का सही उपयोग करने के लिए कहा गया है कि दीन एवं ब्राह्मणों को दान दो, मन्दिर बनवाओ, आरोग्यशाला चलाओ, पथिकों को निःशुल्क भोजन बांटो आदि ( कुव० ६५.८-९ ) । इस प्रकार के कार्य राजस्थान के जन जीवन के "अनिवार्य अंग है । यहां के राजाओं की प्रशस्तियों और अभिलेखों में इस प्रकार के दान-पत्रों सन्दर्भ हैं" । और राजस्थान की कला के विभिन्न पक्ष कुवलयमाला द्वारा उद्घाटित हुए हैं । चित्रकला मूर्तिकला का विस्तृत वर्णन इस ग्रन्थ में है । स्थापत्य कला के कई शब्द राजस्थान में उसी रूप में व्यवहृत होते हैं, जिस रूप में उनका उल्लेख कुलमाला में हुआ है । राजस्थान के किलों का जिन रूपों में निर्माण हुआ है, कुंव० के नगरों के वर्णन में वही पद्धति प्राप्त होती है । परिखा, प्राकार, रक्षा-चोको, गोपुर, राज्यमार्ग, सिंह-द्वार, राजमहल की संरचना आदि राजस्थान के किसी किले में देखी जा सकती है। राजस्थान के निजी भवनों की बालकनी अथवा ऊपरी तल को माला कहा जाता है । कुत्र० में भी भवन की दूसरी मंजिल को माला कहा गया है। कमरों को कोठा कहा गया है" । कुव० में चित्रकला के वर्णन में पटचित्रों का विशेष महत्व हैं । व्यक्तिगत, धार्मिक एवं कथानक पटचित्रों का इसमें विस्तृत वर्णन है । राजस्थान की रामदला को पड़ की विषयवस्तु, रंग संयोजन, प्रस्तुतीकरण आदि कुत्र की पटचित्रकला से प्रभावित हैं। कुव० में जो कथात्मक पटचित्र वर्णित है उसका विकसित रूप राजस्थान की पाबू जी पड़, देवनारायण १- मूलस्याणु भडारउ कोढई जे देइ उद्दालइज्जे लोयहुं । कुत्र० ५५-१६ २- को वि रेमंतस्स, वही, ६८.१९ ३ - राजस्थान श्रु द एजेज, पृ० ३९३ ( फुटनोट ) ४ - खाणे कूव - तलाए बंघइ वावीओ देह य पवाओ । कुव० २०५-३ ५- भोजन प्रथम की दौलतपुर एवं बराह प्लेट, महेन्द्रपाल द्वितीय के अपराजित गुहिल के उदयपुर अभिलेख आदि । उद्घृत, राज० ६ - द्रष्टव्य, लेखक का ग्रन्थ, पृ० ३२५-३० कावि रच्छामुहम्म संठिया, अण्णा मालएर्स् - कुत्र० २५.८ ८- कोट्ठय कोणाओ, वही, ४७.१५ -6 प्रतापगढ़ अभिलेख, द एजेज, पृ० ३९८, ३९९ ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420