________________
aa के महावीर मन्दिर की मूर्तियों का मूर्ति वैज्ञानिक अध्ययन
मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी
aa का महावीर मन्दिर राजस्थान के पाली जिले के घणेरव नामक स्थल से लगभग चार मील की दूरी पर स्थित है। महावीर को समर्पित श्वेतांचर परम्परा का उक्त मन्दिर मूलप्रासाद, गूढमण्डप, सुखमण्डप एवं रंगमण्डप से युक्त है । मन्दिर के साथ ही कुछ बाद की (१२ वीं शती) २४ देवकुलिकाएं भी संयुक्त हैं । भण्डारकर ने मन्दिर को ग्यारहवीं शती का निर्माण बतलाया है ।' किन्तु मधुसूदन ढाकी मन्दिर के मूल भाग को दसवीं शती के मध्य का निर्माण स्वीकार करते हैं । ढाकी ने अपनी तिथि की पुष्टि जगत के अम्बिका मन्दिर (९६९) से महावीर मन्दिर को समता के आधार पर को है । " स्थानीय सूचनाओं के अनुसार महावीर मन्दिर के गर्भगृह में किसी समय ९५४ के लेख से युक्त एक पीठिका सुरक्षित थी । मन्दिर का गर्भगृह एवं भीतर के अन्य भाग भले ही दसवीं शती में निर्मित रहे हों पर मन्दिर के विभिन्न बाह्य आयामों पर उत्कोर्ण मूर्तियों की लाक्षणिक विशेषताओं के आधार पर उन्हें ग्यारहवीं शती में उत्कीर्णित स्वीकार करना ही ज्यादा उचित प्रतीत होता है । मुखमण्डप के एक स्तम्भ पर विक्रम संवत् १९०५ ( = १०४८) का एक लेख भी उत्कीर्ण है । बारहवीं शती की देवकुलिकाओं के एक स्तंभ पर संवत् १२१३ ( = १९५६ ) का एक लेख प्राप्त होता है । ४
मन्दिर की जंघा वेदिका एवं अन्य सभी आयामों को मूर्तियां दो अर्ध स्तम्भों से वेष्ठित है और शीर्ष भाग में चैत्य गवाक्ष के अलंकरणों से युक्त रथिकाओं में स्थापित हैं। सभी देव आकृतियां करण्डमुकुट एवं अन्य सामान्य अलंकरणों के साथ ही भामण्डल एवं मस्तक के दोनों पार्श्वो में वृक्ष की पत्तियों के अलंकरण से युक्त हैं। देवियों का चोली, स्तनहार एवं लम्बी धोती के साथ प्रदर्शित किया गया है ।
मन्दिर की जंघा पर केवल दिक्पालों को ही आमूर्तित किया गया है । त्रिभंग मुद्रा में खड़ी सभी दिक्पाल आकृतियां द्विभुज हैं । जैन मूर्त अंकनों में द्विभुज दिक्पालों के चित्रण का एकमात्र दूसरा उदाहरण आठवीं शती के ओशिया के महावीर मन्दिर की भित्तियों पर ही देखा जा सकता है । दिक्पाल चित्रण के सम्बन्ध में एक विशिष्ट बात यह है कि इस स्थल पर अष्ट दिक्पालों के स्थान पर दस दिक्पालों को निरूपित किया गया है ।" ज्ञातव्य है कि जैन परम्परा में दस दिक्पालों के चित्रण का एक मात्र उदाहरण इसी स्थल से प्राप्त होता है । रथिकाओं की पद्मासन पर खड़ी सभी दिक्पाल आकृतियां (३४४१७११) दो स्त्री चामरधारिणियों एवं उड्डीयमान मालाधरों से युक्त हैं ।
वाम पार्श्व में गजवाहन से युक्त इन्द्र की दाहिनी भुजा जानु पर स्थित है और बायीं में वज्र प्रदर्शित हैं । अग्नि की तुन्दीली आकृति लम्बी दाढ़ी, जटामुकुट एवं ज्वाला मय कांतिमण्डल से युक्त है । दाहिने पार्श्व में वाहन मेष उत्कीर्ण है । देवता की दक्षिण भुजा में अभय - अक्षमाला प्रदर्शित है, और वाम में कमण्डलु स्थित है । जटामुकुट से सुशोभित यम के वाम पार्श्व में वाहन महिष निरूपित है । देवता की बायीं भुजा में गदा ( या दण्ड ) स्थित है, और दाहिनी जानु पर आराम कर रही है । भयानक दर्शन वाले निऋति को अन्य स्थलों
1