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शति
रुक्मिणीकल्याणमें सङ्गीत रु. क. के सङ्गीतशास्त्रविषयक पद्यों में कवि द्वारा अनेक अलङ्कारों का भी प्रयोग अनायास किया गया है । साङ्गीतिक चर्चा के कारण ही ये अलङ्कर वहाँ प्रयुक्त हुए हैं । ये अलङ्कार हैं-उपमा (१।२३), आलु ते (४।२५), रूपक (४।२५, ८१४५, ९।२२) और भ्रान्तिमान् (६।२९) ।
रु. क. में अनेक सङ्गोतशास्त्रीय पारिभाषिक शब्दों का भी प्रयोग उपलब्ध है जो कवि के गम्भीर नान का परिचायक है । वे शब्द हैं - पञ्चम राग (१९७४)
(११७४, ३३१०,३।१०८) ग्राम
(१।७४, ३।१०) गीति
(११९९) गान
(८/४५, ९।२२) सङ्गीत (१।७३, १।९९) स्वर
(३।१०, ८११५, ८/४५) विशेष जाति
(३।१०, १०५९) उच्चावच मूर्छना (३।९२) ताल, लय
(३।९२, ८१४५) लास्य
(३।९२, ६।२९) नृत्य
(६।६०, ८११६) नृत्त
(८1१७) विस्वर (३।१०८, ८।४५) गन्धर्व
(५।१८) परिणीति गीति (६।११) षड्रजोत्पत्ति (८११५, ८।४५) .. पञ्चमोत्पत्ति (१०१५९) ___इस प्रकार यह सुनिश्चित है कि महाकवि श्रीराजचूडामणि दीक्षित सङ्गीतविद्या के निष्णात वेत्ता थे ।
राग